Tuesday, 6 May 2025

 डॉ. राघवेन्द्र मिश्र 

"सोनभद्र: ऊर्जा की राजधानी"
(औद्योगिक, ऊर्जा और आर्थिक विकास पर आधारित एक कविता)

विंध्य के आँचल में बसा,
खनिजों से भरा सोनभद्र धरा।
कोयले की गहराइयों में है दीप,
जहाँ ऊर्जा फूटे, रातें हों समीप।

शक्तिनगर से अनपरा तक,
धुआँ उठे, उजास बहे चकचक।
ओबरा की ज्वाला कहे गर्व से,
"मैं हूँ उत्तर भारत की शक्ति का स्पर्श।"

रिहंद की लहरों में बिजली की धार,
गोविंद सागर करे सबका उद्धार।
हिंडाल्को के कारखानों में,
धातु पिघले, भविष्य सँवारे कामनाओं में।

सीमेंट की चट्टानों से गूँजे नगाड़ा,
जयपी, अल्ट्राटेक, प्रिज़्म का सहारा।
मार्बल, चूना, डोलोमाइट की खान,
सृजन रचता हर पल यहाँ ज्ञान।

सिंगरौली कोलफील्ड की काली रेखा,
बनती है विकास की जीवनरेखा।
नक्शे पर उभरता एक नया आयाम,
"ऊर्जा की राजधानी"  मिला जो यह नाम।

न केवल उद्योग, न केवल मशीन,
यहाँ बसता है परिश्रम का यथार्थीन।
आदिवासी जन की मेहनत की छाया,
हैं विकास के पहियों की गहराई माया।

रोजगार की गूंज, सड़कें चमकती,
बैंकिंग, व्यापार, नई आशाएँ सजतीं।
शोध को मिले यहाँ नई जमीन,
ऊर्जा, पर्यावरण की बने प्रवीन।

विकास की लौ को यदि दिशा मिले,
तो हर घर में दीप नया खिले।
सतत हो खनन, हरियाली साथ हो,
समरस समाज का शुभ माथ हो।

हे सोनभद्र! तू केवल जिला नहीं,
भारत के हृदय की धड़कन बही ।
तेरे धुएँ में छुपा है उजियारा,
तेरे खनिजों में भविष्य हमारा।

@Dr. Raghavendra Mishra 

No comments:

Post a Comment