एकात्म मानववाद दर्शन का संदेश
(पं. दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन पर आधारित)
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
ना पूँजी की अंधी दौड़, ना वर्गों का प्रचार,
हर मानव में दिखे ईश्वर, यही है सत्य मूल सार।
शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा मानव के चार स्वरूप,
इन सबका जो करे समन्वय, वही हो जीवन विवेक भूप।।
न राष्ट्र केवल सीमाओं से, न केवल शासक की बात,
राष्ट्र है चिति की चेतना, है संस्कृति का आत्म प्रभात।
हर गाँव, हर जाति, हर भाषा एक सूत्र में बंध जाए,
भारत माता की चिति ज्योति, हर जीवन में झिलमिलाए।।
धर्म यहाँ पंथ नहीं कोई, धर्म है कर्तव्य प्रकाश,
नीति, करुणा और समरसता यही जीवन की तलाश।
सत्ता का नहीं लोभ उनको, सेवा ही जिनका ध्येय,
दीनदयाल ने जो दिखलाया वह है सच्चा राष्ट्र श्रेय।।
अंतिम जन की आँखों में, सपनों की जो ज्योति भरे,
जिसका विकास न हुआ हो, सबका मंगल साथ चले।
'अंत्योदय' की राह दिखाकर, समाज को जो जोड़ गया,
वह पथ एकात्म मानवता का, भारत को संजो गया।।
ग्राम केंद्रित अर्थनीति, नीतियाँ चिति से जुड़ी हों,
विदेशी सोच की नकल नहीं, स्वदेशी मूल्य जगी हों।
शोषण, द्वेष मिटें सब ओर, बने समरसता की राह,
नव भारत के नव निर्माण में, हो संस्कृति का चाह।।
विचार उनका दीपक जैसा, नित आलोकित करे तर्क,
आज भी गूँजें वह स्वर ‘सेवा है जीवन का अर्थ’।
जो जीता था भारतमय बन, था साधक, ज्ञानी, मुनि सा,
उस तपस्वी का दर्शन बनता, आत्मा का उत्सव जैसा।।
पं. दीनदयाल का दर्शन, भारतीय आत्मा की वाणी है।
जो हर युग में कहता है, मानव सेवा ही ईश्वर कल्याणी है।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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