Wednesday, 14 May 2025

भारत का अनादि देश है जम्मू कश्मीर,

कल्हण की लेखनी है बहुत ही मधुर गम्भीर।।

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

सहस्त्राब्दियों की स्मृति में, बहती शब्द धारा,

कल्हण ने गाया इतिहास का सच्चा मधुर तारा।
न जयगान न मिथ्या राग, न पक्षपात की बात,
सत्य न्याय के सुरों में रचा, कश्मीर का जीवन प्रभात।।

हम न किसी के शत्रु यहाँ, न प्रियपात्र विशेष,
धर्म अधर्म की तुला पर तौले, राजा हो या देश।
ऐसे ही निर्भीक मनुज ने, कलम उठाई थी,
भारत की इतिहास धारा को दिशा दिखाई थी।।

गोनंद की गाथाएँ, शैव बौद्ध की बानी,
राजा ललितादित्य के प्रताप की कहानी।
शिलालेख, ताम्रपत्र, लोककथा के स्वर,
सभी समेटे ग्रंथ में, निर्भय होकर।।

न केवल तिथि, न केवल नाम,
नीति अनीति के राग विराग का हुआ था गान।
राजतरंगिणी नदियों सी बहती,
भारत की सांस्कृतिक चेतना कहती।।

कश्मीर जहाँ से भारतीयता झाके,
नित धर्म, दर्शन, शौर्य वहाँ वाचे।
अभिमान, लोभ, क्रोध जहाँ ध्वस्त हुए,
जन हित के दीप वहीं अभ्यस्त हुए।।

इतिहास न केवल अतीत की छाया,
यह वर्तमान की भी सच्ची माया।
कल्हण ने जो लिखा उसे पढ़ें ज्ञानी, 
क्योंकि वही दृष्टि हमें दे शुभ जवानी।।

जहाँ आज विकृतियाँ करतीं प्रहार,
वहाँ राजतरंगिणी है सच्चा प्रतिकार।

भारत का अनादि देश है जम्मू कश्मीर,

कल्हण की लेखनी है बहुत ही मधुर गम्भीर।।

स्मृति की तरंगों में सत्य का हो विस्तार,
यही है कल्हण के राजतरंगिणी का उपकार।

इतिहास का वह दीप जलाएँ,

सनातन का वह ध्वज, फिर से लहराएं।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

No comments:

Post a Comment