Wednesday, 28 May 2025

 राष्ट्रनायक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी 

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

बंगाल धरा की पुण्य संतान, तेजस्वी बुद्धि, निष्ठा महान।
शैक्षिक दीप जलाया जिसने, ज्ञान से भर दी नव पहचान॥
पिता थे जिनके आशुतोष, विद्या के अद्भुत दिव्य ज्योति,
शिक्षा, विचार, त्याग, तपोबल से, भर दिया भारत में मोती॥

लंदन से लौटा ज्ञानदीप, बना बैरिस्टर सत्य समीप,
कलकत्ता का कुल गौरव बना, युवा कुलपति निज संदीप।
पर मन था केवल राष्ट्र हितों में, निज स्वार्थ नहीं उसका ध्येय,
भारत माँ के गौरव खातिर, छोड़ दिए सुख, छोड़ दिए श्रेय॥

भारत में मंत्रिपद सम्हाला, पर जब हुआ भारत का हाला,
लियाकत संग जो संधि हुई, उसने जला दिया अंतःज्वाला।
कह डाला स्पष्ट, अन्याय नहीं सहूँगा,
राष्ट्रहित से ऊपर कुछ नहीं कहूँगा॥

संगठित किया राष्ट्रवाद का स्वर,
जनसंघ बना उसका नव हर।
‘एक विधान, एक प्रधान’ की बात,
कश्मीर बने भारत का अंग, यह ही थी उनकी मात॥

न परमिट, न बँटवारा, यह देश नहीं बाजार हमारा,
नव ध्वजा लिए बढ़ चले वीर, सीना ताने, निर्भय नभ सारा।
पर कुटिल राजनीति ने जाल रचा, बंदी बना सत्य को सजा,
और अंततः 23 जून की तिथि, ले आई वह दुखद घड़ी बजा॥

हिरासत में मृत्यु हुई, रहस्य से भरपूर कहानी,
पर भारत माँ ने खो दिया, वीर सपूत, उत्तम बलिदानी।
जिसने माँ को टुकड़ों में बँटने न दिया,
जीते जी अनुच्छेद-370 को अपनाने न दिया॥

वह जो स्वप्न अपने आँखों में बुना,
आज उसी पथ पर चलता भारत बना।
संस्कृति, एकता, स्वाभिमान था उसके जीवन का गीत,
आज भी जन-जन में गूँजता, उसका तेजस्वी राष्ट्रभक्त हित॥

श्यामा प्रसाद, तुम अमर रहो,
राष्ट्रधर्म के उर स्वर रहो।
भारतीय तेरे ऋण में है,
तू प्रेरक हर मीन में है॥

@Dr. Raghavendra Mishra 

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