Thursday, 22 May 2025

शंकर के अष्टक भक्ति के अष्ट दीप

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

शंकराचार्य ज्ञान के सागर, वेदान्त के आचार्य प्रखर,
भक्ति में जिनकी लेखनी बहती, शब्दों में शिव निरन्तर।
लिखे अष्टक रूपी दीपक, आठ-आठ रत्न समान,
हर अष्टक में बसी भक्ति, ज्ञान, भाव और ध्यान।।

शिवाष्टक में भोले नाथ, त्रिपुण्ड्रधारी गंगाधर,
जटाओं में है नील गगन, करुणा में डूबा हर स्वर।
प्रभो शंकर देशिक मे शरणम्, यह पुकार शरणागत की,
नयनों में नीर बहा जाए, चरणों में सदा सुधिजन की।।

भवानी अष्टक माता की, करुणा की अखंड पुकार,
“न माता न ताता” कह कर, रोया जीव बारम्बार।
भक्ति की उर में आँधी थी, पर कृपा की भी बूँद थी,
भवानी ने बाँहों में भर कर, सब पीड़ाएँ दूर की।।

गोविन्द अष्टक रच डाले, जीवन को जगा गए 
“भज गोविन्दं मूढमते”, माया को जला गए।
वैराग्य का राग बहे, मोह का बंधन कट जाए,
नाम स्मरण से गोविन्द का, मुक्ति स्वयं मिल आए।।

लक्ष्मी नृसिंह अष्टक आया, संकटहरता भयानक रूप, 
शरण में जब भक्त पुकारे, तो सिंह बने सनाथ देव भूप।
कर में चक्र, नयन में तेज, सिंहमुख पर माँ की माया,
अष्टक पाठ से संताप मिटे, हर भय-शोक भगाया।।

दक्षिणामूर्ति अष्टक में, गुरु रूप शिव प्रकट हुए,
“विश्वं दर्पण दृष्ट्य” कह कर, माया में प्रगट हुए।
तत्त्वमसि का बोध दिलाया, आत्मा में ही ब्रह्म बताया,
श्रुति, स्मृति, तर्क सबको, इस अष्टक ने सब समाया।।

गणेश अष्टक रचा उन्होंने, विनायक का किया गुणगान,
शुभ-लाभ की वंदना से, खुलते सब संकल्प धाम।
गजमुख, एकदंत, वरदाता, बुद्धि के दाता जग में,
उनकी महिमा गूँजती, सभी अष्टक के पग में।।

श्रीराम और श्रीकृष्ण अष्टक, भक्ति भाव की सजी माला,
मर्यादा और माधुर्य दोनों, बने कवि के भावों वाला।
राम में नीति की छाया, कृष्ण में रास की रागिनी,
दोनों में आत्मा खोजती, निजता की कोई पावनी।।

अष्टक नहीं केवल कविता, वे हैं दीप आत्मबोध के,
हर श्लोक एक मंत्र बने, नाद रचे परमोदय के।
शंकर के ये आठ दीपक, हृदय के भीतर जलते हैं,
जो भी पढ़े मन से इनको, वे भवसागर को फलते हैं।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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