सनातन बारह पंथी नाथ परम्परा
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
नाथ योग की अमर कहानी, शिव के समान है पुरानी।
आदिनाथ की अखंड वाणी, बनी ज्ञान की प्रथम निशानी।।
मत्स्येन्द्रनाथ जागृत ज्ञानी, तंत्र व योग के पावन ध्यानी।
गुरु गोरख की दीक्षा लीना, साधना में जीवन बानी।।
बारह पंथों का फिर विस्तार, फैला भारत में भू-आकार।
काशी, काठियावाड़, गिरनार, समरथ से लेकर बंगाल द्वार।
अवध-जूनागढ़, पावागढ़ धाम, हर पंथ लिए निज योग-विराम।
गहन तत्त्व की गूढ़ व्याख्या, साक्षात ब्रह्म की दी हुई साख्या।
सिद्ध योग की सहज परंपरा, नाथों ने फैलाई गम्भीरा।
हठ योग, कुंडलिनी ध्यान, करते जग में दिव्य प्रचार।
गुफा-कंदराओं में साधन, त्याग-तपस्या, आत्मा का मधुबन।
सिद्ध सिद्धांतों से पावन, बारह पंथ बने शिव-सावन।
शैव, वैष्णव, शाक्त समाना, एकत्व में दर्शन बाना।
ना था भेद, न द्वैत विचार, शिवत्व में ही नाथ आधार।
संन्यासियों की वाणी झंकार, गूँजी भारत के गाँव-नगर पार।
नेपाल, तिब्बत, अफगान भूत, पहुँचा नाथों का गूढ़ रुचिर सूत्र।
नाथ परंपरा सनातन मूल, ना कोई सीमित धर्म का कूल।
ज्ञान, तप, सेवा, वैराग्य, इनके ही चारों आधारभाग।
योगी बन कर जो जग जाए,
वह शिव से नाता फिर पाए।
नाथों की यह गौरव गाथा,
रचे शिव का अमर सुनाता।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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