Friday, 30 May 2025

संघ की शताब्दी-दीपशिखा

(एक शाखा, एक स्वयंसेवक, संसार में युग परिवर्तन होगा)

(राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर कविता)

डॉ.राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

विजयादशमी की पुण्य विभा में, एक दीप जला था नागपुर में,
संघ बना वह तेजपुंज, जो बढ़ चला वीरता के सूर में।
हेडगेवार के भाव भरे थे, राष्ट्रभाव की शुद्ध गाथा,
जात-पात से ऊपर उठकर, भारत को देना था शुभ माथा।।

भारत माता परम वैभव को, फिर से पाए गौरव रूप,
यही था संघ का मूल स्वप्न, यही था कर्म, यही स्वरूप।
न कोई सत्ता, न लालच था, केवल तपस्वी भाव जगा,
चरित्र निर्माण, उन्नत राष्ट्र, उर में संग्राम सजा।।

राम लला की जन्मभूमि पर, बने स्वयंसेवक हनुमान,
काशी, केदार, कैलासों का, फिर से किया दिव्य अभियान।
धर्म यहां ना द्वेष सिखाता, धर्म है ‘धृति’, धर्म है ‘बन्धु’,
जो जोड़ सके सभी धरोहर, वह है संघ का सत्य शुभ संधु।।

भूकंप हो या बाढ़ कहर हो, संघ खड़ा रहा सदा,
कोरोना की छाया में भी, मानवता को गले लगा।
सेवा भारती, विद्या दीपक, वनवासी को आलोक दिया,
जहां कमी थी माँ की ममता, वहाँ संघ ने साथ दिया।।

कोई ना छोटा, कोई ना ऊँचा, जाति-पंथ सब भूल चलें,
संघ ने सींचा वह बोधि वृक्ष, जहां सभी समभाव फलें।
दलित, वंचित, वन में छुपा वह, जो अभिशप्त था समाज से,
संघ ने उसे आलोक दिया, अपनत्व भरे हर साज से।।

छात्र बना अब वीर सपूत, ABVP के प्रण से,
शिक्षा में संघ घुले संस्कार, ऋषि परंपरा के तन से।
विद्या भारती, संस्कृत ज्योति, भारत को फिर ज्ञान दिया,
नवयुवक उठे बन सूर्य समान, राष्ट्र-चेतना को प्राण दिया।।

लंदन से लेकर लाओस तक, संघ की गूंज सुनाई दे,
HSS की शाखा बोले “भारत दर्शन गाई दे।
योग, गीता, वेद-वाणी को, जब आलिंगन विश्व करे,
संघ बन जाए विश्व का दीपक, प्रेम, शांति का भाव भरे।।

अब सौ वर्ष की हो चली यात्रा, पर दीप नहीं अभी जरा,
हर गाँव, हर हृदय बने शाखा, यही संघ का शुद्ध भाव भरा।
भारत फिर से गुरु बनेगा, सेवा, न्याय, धर्म घना,
संघ की यह साधना होगी, भारत संपूर्ण राष्ट्र बना।।

संघ केवल संगठन है नहीं, संघ है एक दिव्य तपस्या,

संघ है उस महाकाव्य की कथा, जो गाए युगों की व्याख्या।एक शाखा, एक स्वयंसेवक, संसार में युग परिवर्तन होगा,

जब संघ लक्ष्य पूर्ण होगा, अखण्ड भारत का कीर्तन होगा।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

8920597559

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