Thursday, 22 May 2025

मध्यभूमि की पुण्य कहानी, संस्कृति की शाश्वत वाणी।

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

मध्यभूमि की पुण्य कहानी, संस्कृति की शाश्वत वानी।

इतिहास से ओतप्रोत धरा, वेदों का यह पावन ज्ञानी।।

अवन्तिका की उजली ज्वाला, जहाँ महाकाल निवास करें,
ओंकार नादमय बनकर, योग-साधना में स्वास करें।
साँची के स्तूपों की वाणी, बुद्धत्व की बात कहें,
विदिशा, उज्जयिनी की माटी, शास्त्रों के रंग शाश्वत बहें।।

खजुराहो के प्रस्तर बोलें, सौंदर्यशास्त्र की भाषा में,
नग्न नहीं, यह ध्यान प्रतीक है, आत्मा की अभिलाषा में।
भोजशाला के ग्रंथगृह में, गूँजें ऋचाएं ज्ञान की,
राजा भोज की दूरदृष्टि, नींव रखी स्वाभिमान की।।

भीलों की बांसुरी बोले, गोंडों की गाथा गाती है,
नर्मदा के कलकल स्वर में, जीवन-संस्कृति सुनाती है।
पोहा-जलेबी की मिठास, दाल बाफले का स्वाद,
संस्कृति और स्वाद-संवेदना, दोनों में यह राज्य संवाद।।

कुंडलपुर के जैन तीर्थ से, संयम की बात निकलती है,
आहिल्याबाई की राजकाज में, भक्ति प्रजा में पलती है।
भक्ति, नीति, न्याय की गाथा, इस भूमि पर फूली-फली,
संतों, मुनियों, तपस्वियों की, साधना यहाँ मिली-जुली।।

ताना-बाना शिक्षा का भी, धार, भोपाल, महू में रचा,
जहाँ अंबेडकर ने समाज को, नवसंविधान सृजन में वचा।
ग्वालियर के किले गवाही, वीरों के बलिदान की,
राजनीति और जनसेवा की, यह भूमि सनातन महान की।।

खजुराहो में कला बोलती, चुप शिलाओं की छवि में,
उज्जैन में काल ठहरता है, कालचक्र के रवि में।
नर्मदा माँ की गोद बसे, हर तीर्थ, हर तपोवन,
मध्यप्रदेश नहीं मात्र प्रदेश, यही भारत का अमर जपोवन।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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