ब्रह्मसूत्र अद्वैत की अमर वाणी
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
जब वेदों की वाणी रहस्य लगी,
जब आत्मा ब्रह्म को खोजने जगी।
तब उठा एक यज्ञ का यंत्र,
सूत्र बना ज्ञान का दिव्य मंत्र।
बादरायण मुनि का अमर प्रकाश,
ज्योतिर्मय हुआ वेदान्त का प्रयास।
पंचशत से अधिक सूत्रों में,
ब्रह्म का सत्य बसा सूत्रों में।
पहला अध्याय समन्वय साज,
उपनिषदों का करे सुर ताज।
हर वाक्य ब्रह्म की गाथा गाए,
"तत्त्वमसि" का नाद सुनाए।
दूसरा अध्याय विरोध न माने,
सांख्य, न्याय सभी तर्क मिटाने।
तत्त्व वही है, जो शुद्ध ब्रह्म,
नहीं द्वैत, बस अद्वैत का क्रम।
तीसरा अध्याय साधन बताए,
श्रवण, मनन से सत्य दिलाए।
ध्यान, उपासना, विद्या निरंतर,
ज्ञान से ही हो ब्रह्म का अंतर।
चौथा अध्याय फल का सार,
मोक्ष मिले जब हटे विकार।
न आवागमन, न बंधन शेष,
ब्रह्मरूप हो, आत्मा विशेष।
शंकर ने रचा शारीरक भाष्य,
ब्रह्म ही सत्य, बाकी माया नाश।
"अहं ब्रह्मास्मि" का दिया ज्ञान,
अद्वैत बना सनातन गान।
रामानुज ने विशिष्ट कहा,
जीव-ब्रह्म का संबंध रहा।
मध्व ने द्वैत का स्वर सुनाया,
हर भाष्य में ब्रह्म झलकाया।
ब्रह्मसूत्र न शब्द मात्र,
यह है आत्म का शाश्वत साथ।
यह सूत्र वही, ब्रह्म की गान,
सत्य की यह वाणी अमर ज्ञान।
नित्य, शुद्ध, बुद्ध ब्रह्म स्वरूप,
इस सूत्र में बसा हर रूप।
जो समझे इसे, ज्ञान वह पाए,
जीव ब्रह्म में अभेद दिखाए।
@Dr. Raghavendra Mishra
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