प्रत्यभिज्ञा के प्रथम दीप आचार्य सोमानंद
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
शिवदृष्टि जिनके वाणी में, सत्य तत्त्व की ज्योती थे,
पूज्य आचार्य सोमानंद, ज्ञानगंगा के मोती थे।
कश्मीर की धरती पर उगा, एक तत्त्व का सूर्य महान,
प्रत्यभिज्ञा के मूल स्रोत, शिवस्वरूप का था गान।।
न शिव को माना निष्क्रिय केवल, न ही माया का भ्रम ठहराया,
चित् स्वरूप में स्वातन्त्र्यशक्ति, जग को शिव का रूप बताया।
शिव ही सत्ता, शिव ही रचता, शिव से ही सब कुछ है व्याप्त,
यह जग मिथ्या नहीं है मूढ़ो, यह है उसकी क्रिया से आप्त।।
शिवदृष्टि में सात आह्निक, ज्ञानार्थ अमृत के हैं मूल,
प्रत्यभिज्ञा का दीप प्रज्वलित, जिससे मिटे अज्ञान का शूल।
ज्योतिर्मय वह दर्शन निर्मल, शब्दों में शिव ने ली श्वास,
जीव को करवाया बोध पुनः, तू ही शिव है यह कर विश्वास।।
गुरु वसुगुप्त की परंपरा में, रचे शिवसूत्रों की व्याख्या,
सोमानंद ने रचा तन्त्र, सुतर्क सहित दिए शिव आख्या।
न केवल भाव, न केवल भक्ति, तत्त्व में युक्ति की स्थापना,
शिवदृष्टि से किया उद्घाटन,मोक्ष विद्या की प्रस्थापना।।
शिष्य उत्पलदेव बने दीप, ईश्वरप्रत्यभिज्ञा की रचना की,
शैवदर्शन की धाराओं में, नव चेतना की कल्पना दी।
सोमानंद थे प्रथम शिल्पी, जिस प्रत्यभिज्ञा के दर्शन में,
जीव स्वयं शिव को पहचाने,जाग उठे जब निज अर्पण में।।
वेदान्त से भिन्न, सांख्य से न्यारा, तन्त्र से आलोकित मार्ग,
सोमानंद ने दिखाया जग को, शिवत्व का अनुभवित सार।
न द्वैत, न अद्वैत की सीमाएँ, केवल अनुभव का विस्तार,
शिव है चेतन, शिव है कर्ता, शिव है साक्षात् आधार।।
"सोमानंद! हे ज्ञानयोगी, तेरा स्मरण करे जो साधक।
उसके अंतर में उठे शिव, मिटे मोह और स्पर्श बाधक।।"
@Dr. Raghavendra Mishra
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