नारी हो या नर कोई भी, जब गुरु चरण पावै,
ज्ञान-ज्योति तब चित्त में उदित, स्वयं शिव बनि आवै।
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
अमरनाथ की शीत शरण में, जागे ज्ञान प्रखर,
लक्ष्मण जू की वाणी में था, तत्त्वत्रय का स्वर।
शैव रहस्य प्रकट हुआ जब, मौन मुनि मुस्काए,
दो नारियाँ बन चलीं शिष्या, योग दिशा अपनाए।।
एक थी बेट्टिना बूम, विदेशी कुल की मान,
सांस्कृतिक सौंदर्य खोजती, पहुँची भारत धाम।
स्वामी की चरणों में बैठी, पाया शिव का ज्ञान,
ग्रंथों को अर्थवती किया, जगा दिया विज्ञान।।
शब्दों में उतरी चैतन्य की, अगम कथा अपार,
अभिनवगुप्त की व्याख्या में, प्रकट हुआ विस्तार।
वेद तंत्र संहिता सजीव, उनके कलम ने राचे,
पश्चिम में फैली प्रभा शिवा की, ऋषि वाक्य मुखर बाचे।।
नारी थीं वे, शुभ ज्ञान दीप थीं, शैवभाव में लीन,
नारीत्व का तेज बनीं वे, शिवशक्ति में विलीन।
लक्ष्मण जू की अमर धरोहर, दोनों ही स्तम्भ शान,
कश्मीर की तत्त्व-ब्रह्मधारा में, बन गईं विलक्षण नाम।।
शिव की लीला, गुरु की कृपा, शिष्या में जो जागे,
भाषा, देश, शरीर का बंधन, तत्वमार्ग न लागे।
नारी हो या नर कोई भी, जब गुरु चरण पावै,
ज्ञान-ज्योति तब चित्त में उदित, स्वयं शिव बनि आवै।
@Dr. Raghavendra Mishra
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