एकात्म चेतना के पुजारी पं. दीनदयाल उपाध्याय जी
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
चमका था नगला चन्द्रभान में, उर दीपक सा तेज अनूप।
जिसने भारतमाता के हित, बाँधा वैचारिक स्वरूप।।
गुरु श्यामा की दृष्टि जिसे, संगठन की धारा में लायी।
संघ-संस्कारों से पाला, सेवा की प्रतिज्ञा निभाई।।
नहीं लिप्त था लोभ-मोह में, न सत्ता की थी अभिलाषा।
सादा जीवन, ऊँचे सपने, भारत माँ ही थी आशा।।
एकात्म मानव दर्शन देकर, भारत को पथ दिखलाये।
नक़ल नहीं पाश्चात्य की चाही, स्वदेशी जीवन अपनाये।।
"अंत्योदय" का मंत्र सुनाया, अंतिम जन तक दृष्टि पहुँचाई।
ग्राम-केंद्रित अर्थनीति से, उन्नति की नयी राह बताई।।
जाति-भेद को तोड़ समता का, मन्त्र जपा हर पल में।
संस्कृति की चिति थी उनके, राष्ट्र प्रेम के संबल में।।
धर्म राजनीति को मिलाकर, नीति को सदाचार बनाया।
भारत की माटी से जुड़कर, जीवन दर्शन समझाया।।
शब्द नहीं थे मात्र विचार, वे जीवन के जीवंत प्रतीक।
वाणी में था वेद विवेक, और कर्मों में नीति संदीप।।
पर रहस्य बनी वो अंतिम रात, जब सन्नाटा बोल उठा।
मुग़लसराय की पटरी पर, भारत का दीपक डोल उठा।।
आज भी जनसंघ से भाजपा, जिनकी राहों पर चलती है।
दीनदयाल की साधना से, राष्ट्र चेतना पलती है।।
भारत माँ का सच्चा अधिकारी।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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