Tuesday, 27 May 2025

वीर सावरकर! अमर रहे, नमन शत जन्मों तक

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

जिनके स्वप्नों में था भारत, स्वर्णिम, स्वतंत्र, समर्पित,
जिनके रक्त में जलती थी, ज्वाला चंद्रभागा सी वंदित।
वह एक पुरुष नहीं केवल थे, वह युगपुरुष की आख्या थे,
त्याग, तपस्या, बलिदानों के, अमर दीप की व्याख्या थे।।

वह बालक, जो बचपन में ही, व्रत ले क्रांति पथ चल पड़ा,
शब्दों से शस्त्र बना डाले, दुश्मन का नभ भी जल पड़ा।
“अभिनव भारत” के स्वर गूँजे, लंदन की धरती थर्राई,
कृपा नहीं, हम मांगें स्वराज्य यह हुंकार गगन तक छाई।।

जेल नहीं, तपोवन समझा, कालापानी को मात दिया,
कोल्हू के नीचे सत्ता कुचले, फिर भी नमन न माथ किया।
नाखूनों से दीवारें उकेरीं, और गीत स्वतन्त्रता गाए,
तन टूटे, पर मन न झुके, जैसे शंकर स्वयं समाए।।

लिखा '1857' का यज्ञ, बताया थे यह बलिदान है, 
गुलामों की दृष्टि से ना देखो, यह भारत का स्वाभिमान है।
'हिंदुत्व' की जिस परिभाषा ने, संस्कृति को फिर जोड़ दिया,
जाति-भेद के दुष्ट जाल को, स्वभिमान से तोड़ दिया।।

त्याग दिया सब राजनैतिक सुख, किया देश को अर्पण,
जन्म भी राष्ट्र को दे डाला, और मृत्यु भी समर्पण।
अंत समय में राष्ट्र की, सेवा करके प्रस्थान किया,
कह गए जय मां भारती, राष्ट्र को पुनः महान किया।

युवा मन! तू क्यों सोता है? उठ! सावरकर की धारा बन,
ज्ञान, कर्म, तेज़ और तप में, भर दे राष्ट्र का नव चेतन।
नभ में फिर से घोष उठे “जय वीर सावरकर!”
भारत जन नमन करें आपको, राष्ट्र वीरों का अमर स्वर।

हे राष्ट्र-व्रती, हे युग-द्रष्टा, तुझको कोटि प्रणाम,

तेरी ज्वाला से जीवित है, भारत का यह धाम।
तेरे नाम की ओजवाणी, गूंजे युग-युग तक,
वीर सावरकर! अमर रहे, नमन शत जन्मों तक।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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