Wednesday, 21 May 2025

जम्मू कश्मीर सनातन की स्वरगाथा

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

हिमगिरि की गोदी में वसुधा की कान्ति,

जहाँ बहती चिरंतन ज्ञान की शान्ति।
वह भूमि जहाँ ऋषि-ज्ञान प्रकटे,
शिवसूत्र जहाँ अनहद शब्द लपेटे।।

सरिताओं से सिंचित वह सतीसर धाम,
जहाँ प्रकटे कश्यप, जहाँ ज्ञान का काम।
निलमतपुराण की कथा में जो जागे,
शारदा की जिह्वा से वेद जहाँ लागे।।

जहाँ अभिनवगुप्त ने दीप जलाया,
तंत्रालोक में ब्रह्मज्ञान समाया।
प्रत्यभिज्ञा की प्रतिध्वनि हर घाटी में,
भैरव का विज्ञान छिपा शुभ माटी में।।

राजतरंगिणी कल्हण की लेखनी,
इतिहास में उकेरी सच्ची रेखनी।
मम्मट के छंदों में अलंकार बोले,
काव्यप्रकाश में सरस्वती डोले।।

शारदा पीठ जहाँ विद्याओं का वास,
ज्योतिष, व्याकरण, तंत्रों का प्रकाश।
काश्मीर की पीठों से उपजी परंपरा,
संस्कृति बनी युगों तक अमर धरोहरा।

अवंतीस्वामी, मार्तंड की मूरतें,
सूर्य मंदिरों की स्वर्णिम सूरतें।
हरि पर्वत, अमरनाथ के गह्वर,
ध्यानस्थ योगी, तपस्वी अंबर।।

बहे ज्ञान की नदियाँ हिमगिरि से,
शिवशक्ति की साधना निर्झरि से।
शिवसूत्रों का नाद अनन्त गुंजे,
विज्ञान भैरव में ब्रह्म को पुंजे।।

यहाँ शैव, वैदिक, तांत्रिक रस,
योग-मुद्राओं से जुड़ा हर शुभ यश।
कुंडलिनी जगे जिस ध्यान विधा में,
नाद-बिंदु मिले जिस प्राण सुधा में।।

कश्मीरी पंडितों की पुण्य परंपरा,
जिनकी स्मृति बनी साक्षात् धरोहर अपरा।
वेदशास्त्र जिनके चित्त की श्वास,
भारतीय चेतना का उज्ज्वल प्रकाश।।

यह भू न केवल धरती का अंश,
यह तप, योग, ज्ञान का शुभ हंस।
सनातन संस्कृति की सजीव कथा,
हिमगिरी की गोद में अमृत मथा।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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