Monday, 12 May 2025

काश्मीर शैव परम्परा की अमरगाथा

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

कश्यप मुनि से प्रारम्भ कहानी,

हिमगिरि तले बसे थे ज्ञानी।

सरिताओं के स्वर में बही,

शिवतत्त्व की उज्ज्वल परिभाषा सही।।

दुर्गेश्वर का आलोक महान,

त्रिकशास्त्र से किया प्रज्ञान।

शम्भुनाथ ने गूढ़ बताये,

आगम के रहस्य सुलझाये।।

वासुगुप्त ने ध्वनित किया स्वर,

'शिवसूत्र' से हुआ उजागर।

चेतनता के स्पन्दन ध्वनि में,

कल्लट ने दी गति नवीन में।।

सोमानन्द ने दर्शन गाया,

'शिवदृष्टि' में तत्त्व समाया।

उत्पलदेव की वाणी मधुर,

'प्रत्यभिज्ञा' की सुधा भरपूर।।

लक्ष्मणगुप्त ने दीप जलाया,

ज्ञानदीप से तिमिर मिटाया।

अभिनवगुप्त का अवतरण भव्य,

'तन्त्रालोक' से जगत् सभ्य।।

क्षेमराज ने सुपथ दिखाया,

'प्रत्यभिज्ञाहृदय' से राह सिखाया।

योगराज भट्टारक की वाणी,

प्रत्यभिज्ञा है जग के लिए ज्ञानी।।

रमकण्ठ की व्याख्या चली,

तत्त्वार्थों की धारा फली।

जयारथ ने 'तन्त्रालोक' सुधारा,

गूढ़ शास्त्र का खोला प्यारा।।

महेश्वरानन्द की मधुर व्याख्या,

'महार्थमञ्जरी' में की साख्या।

कालचक्र फिर आगे बढ़ा,

ज्ञान विज्ञान का स्रोत फिर भरा।।

लक्ष्मण जू ने ज्योति जगाई,

आधुनिक युग में शिवमयी छाई।

काश्मीर की भूमि पुनः गुनगुनाई,

'शिवोऽहम्' की गूंज सुनाई।।

यह परम्परा न क्षीण हुई है,

चेतनता में सदा जगी है।

शिवतत्त्व का यह परम प्रताप है,

अनादि, अनन्त, अजर, अभिराम है।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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