अघोर की वाणी, अघोरी की कहानी
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
श्मशान की राख में जो रमा,
वह सत्य का दीपक जला गया।
न भय, न माया, न मोह कोई,
औघड़ बन, अघोरी चला गया।
ना श्वेत था, ना श्याम रहा,
ना दिन था उसमें, ना रैन रहा।
ना द्वैत का भान, ना भाव विकार,
यह अघोर पंथ का मूल सार।
बाबा कीनाराम की बानी,
बनी 'विवेक सागर' की कहानी।
'राम रसाल' रसों का सिंधु,
'राम गीता' में शिव का बंधु।
वह बोले ना पूजन में, ना संकल्प में,
ना माला, ना कोई कल्प में।
जो है उसे जान, जो जानो उसे मान,
अघोर वही, जो भेद भुलाए ज्ञान।
रुद्रयामल की रहस्य धारा,
अघोर तंत्र की अग्नि पारा।
विज्ञान भैरव में ध्यान गहन,
जहाँ मौन भी बोले गूढ़ कथन।
श्मशान वही, जहाँ शिव नाचे,
जटाओं में गंगा बरसाए।
मृदंग वही, जो हड्डी से बने,
जिनके स्वर में ब्रह्मा जाए।
वह पंचमकार का उत्तम सम्मान,
प्रतीक हैं ये जीवन का ज्ञान।
मांस मद्य नहीं विषय विकार,
बल्कि आत्मा के भाव विस्तार।
औघड़ बोले मैं नीच नहीं, मैं तुच्छ नहीं,
मैं ही तू, और तू ही वहीं।
अघोर वही जो सबको जाने,
एक ही आत्मा सबमें माने।"
'अघोर वाणी' में सृष्टि बसी,
हर शब्द साधक को दे गति।
'राम गीता' की रेखाएँ कहें,
भय मुक्त बन, मन को सहज बहें।
ना देवालय, ना शास्त्र पुराण,
ना धर्म का कोई ऊँच नीच ज्ञान।
जहाँ सेवा ही सबसे बड़ा धर्म,
यह है अघोर, का उत्तम मर्म।
यदि शिव को पाना है भीतर,
तो अघोर को पढ़ना होगा निज जी कर।
ना विकृति, ना रहस्य डरावना,
अघोर है शिव का प्रेम सजावना।
@Dr. Raghavendra Mishra
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