सनातन ज्ञान पद्धति में बारह पंथी नाथ परम्परा का ऐतिहासिक अध्ययन
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
'बारह पंथी' नाथ पंथ की 12 शाखाएं हैं। नाथ पथ प्राचीन संत सम्प्रदाय है। नाथ पंथ का उद्भव आदि देव शिव से माना जाता है। नाथ नंथ के अनुयायी शिव की अराधना करते हैं। इनके साधना पद्धति हठयोग पर आधारित है। आत्म साक्षात्कार तथा समाज कल्याण नाथ पथियों का मुख्य ध्येय हैं।
गोरखनाथ जी ने कर सभी भौव सम्प्रदायों को संगठित कर उस समय उन्होंने नाथ सम्प्रदाय को बारह शाखाओं में बांट दिया। प्रत्येक शाखा का अपना महात्मा तथा अपना स्थान होता है। वह स्थान उनका तीर्थ तथा महात्मा को आदि प्रर्वतक मानकर उसकी पूजा करते है। बारहपंथी शाखाओं में 6 शिव तथा 6 गोरखनाथ से सम्बन्धित नाथ पंथ से सम्बन्धित रखते हैं। ये बारह पंथी भााखाएं सम्पूर्ण भारत वर्ष में फैली हुई है।
प्रस्तावना
हठ प्रदीपिका के लेखक स्वात्माराम और प्रथम टीकाकार ब्रह्मानन्द इन दोनों ने ही दृढ़ प्रदिपिका ज्योत्सना के पहले उपदेश के 5 से 9वे भलोक में 44 सिद्ध नाथ योगियों का उल्लेख किया हुआ है। इन 33 नाथ योगियों में पहलानाथ आदि नाथ को माना गया है। ये आदिनाथ स्वयं शिव है। प्रथम नाथ आदिनाथ शिव ने ही हठयोग की विधा प्रदान की थी ऐसा इस नाथ ग्रन्थ में उल्लेख किया गया है।
नाथसिद्धों का उल्लेख आर्युवेद ग्रन्थों में भी मिलता है। आर्युवेद ग्रन्थ नाथों को रसायन चिकित्सा के उत्पति करता के रूप में वर्णित करता है।
तंत्र ग्रन्थ शावर तंत्र में कपलिकों के 13 आचार्यों का उल्लेख मिलता है।
पोडस नित्यातंत्र में नक्नाथों का उल्लेख किया जिसमें इनको तंत्र के प्रचारक के रूप में स्थापित किया गया है।
बारह पंथी एक एतिहासिक अध्ययन
"बारह पंथी', नाथ सम्प्रदाय की बारह शाखाओं को बारह पंथी कहा जाता है। एसी मान्यता है कि जब गोरखनाथ जी ने नाथ पंथ को संगठित किया तो उन्होंने नाथ पंथ की बारह शाखाएँ स्थापित की थी और ये बारह शाखाएँ ही बारह पंथ कहलाती है।
गोरखनाथ जी ने जो 12 शाखाएं स्थापित की थी उन्हें इस प्रकार देखा जा सकता हैः-
1. सत्यनाथी
2. धर्मनाथी
3. वैराग
4. माननाथी
5. कन्हड
6. धनपंथ
7. रामपंथ
8. आईपंथ
9. नटेश्वरी
10. पागलपंथ
11. कपिलानी
12. गंगानाथी
इन बारह पंथ की प्रचलित परिपटियोंमें कोई भेद नहीं है।
नाथ पंथ एक शैव संत संप्रदाय है। यह संप्रदाय शिव की उपासना करता है। नाथपंथी शिव के वंशज माने जाते हैं। नाथ पंथ उतना ही प्राचीन है जितना शिव प्राचीन है। आदिनाथ शिव की आराधना करना ही, नाथ पंथ की प्राचीनता की पुष्टि है। स्पष्टतः यह कहा जा सकता है कि नाथ पंथ बहुत ही अनादि काल से विद्यमान था। आदिनाथ शिव के बाद मत्स्येंद्रनाथ हुए।
मत्स्येन्द्रनाथ के बारे में ऐसी मान्यता है कि जब आदिनाथ शिव पार्वती को योग ज्ञान दे रहे थे तो समुद्र में एक मछली थी और उस मछली से यह उत्पन्न हुए इन्होंने मछली के पेट में रहते हुए भी योग ज्ञान की शिक्षा ग्रहण की थी इसलिए यह मत्स्येन्द्र नाथ कहलाए। मत्स्येन्द्रनाथ सिद्ध योगी हुए। मत्स्येन्द्रनाथ जी ने गोरखनाथ जी को अपना शिष्य बनाया। मत्स्येन्द्रनाथ चूंकि शिव अवतार माने गए तो उन्होंने यह पहचाना कि गोरखनाथ ही नाथ पंथ का प्रवर्तन करेंगे और इस परम्परा को विश्व में फैलाएँगे। वहीं हुआ गोरखनाथ जी ने तत्कालीन समाज में जो बुराईयों, कुरितियाँ, व्यापत हो चुकी थी उन पर प्रहार किया विभिन्न सम्प्रदायों की अच्छी शिक्षाओं को अपनाया और नाथ पंथ का प्रवर्तन किया। आदि काशीनाथ पंथ का प्रवर्तन तथा संगठन कार्य करते गए और कालान्तरमें गोरखनाथ जी को ही नाथ पंथ का संस्थापक मान लिया। गया। इस बात की पुष्टि कि मत्स्येन्द्रनाथ ने गोरखनाथ को शिव अवतारी बताया और अपने शिष्य के रूप में उनको दिक्षा दी विभिन्नग्रंथों से होती है। गोरखनाथ कथा, पुराण (पदम् स्कन्द शिव ब्रह्माण्ड), तांत्रिक ग्रंथ (तन्त्र महापर्व) उपनिषद (बृहदारण्यक) एवं अन्य प्राचीन ग्रंथ करते हैं।
सनातन ज्ञान परम्परा में बारह पंथियों नाथ का इतिहास
नाथ पंथियों को बारहपंथी योगी कहने का आधारयही है कि यह नाथ पंथ संगठित करते समय गोरखनाथ ने 12 शाखाओं में विभक्त कर दिया था। प्रत्येक पंथ का अपना एक विशेष स्थान तथा महात्मा होता है जिस संबंधित पंथ वाले अपना तीर्थ और आदि प्रवर्तक मानकर साधना करते हैं। ऐसी मान्यता है किपंथ के आपसी मतभेद कभी-कभी झगड़े का स्वरूप ले लेते थे तो गोरखनाथ जी ने इस समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए ही 12 पंथ में नाथ संप्रदाय को विभक्त कर दिया था 12 पंथो का जो विभाजन किया गया उसमें भी ऐसी मान्यता सामने आती है कि शिव द्वारा स्थापित 12 पंथ तथा गोरखनाथ द्वारा विभक्त 12 पथ इन दोनों में विभिन्न मत मंतन्तरो के कारण आपसी झगड़े होते थे इसीलिए गोरखनाथ जी ने 6 पंथ शिव जी द्वारा स्थापित तथा 6 पंथ अपने द्वारा स्थापित इन दोनों को मिलाकर एक पंथ का निर्माण किया वह पंथही 12 पंथी शाखा जो आज वर्तमान में देखी जा रही है, उसका निर्माण हुआ। वर्तमान की 12 पंथी शाखा का विभक्तिकरण इस प्रकार देखा गया है:
1. भुज के कठरनाथ
2. पेशावरएवं रोहतक के पागलनाथ
3. अफगानिस्तान के रावल
4. संख या पंक
5. भारवाड़ के वन
6. गोपाल या राम के पंथ
7. आईपंथ के चोलीनाथ
8. हेठ नाथ
9. चाद नाथ कपियानी
10. भारवाड़ का बैराग पंथ
11. धजनाथ महावीर
12. जयपुर के पावनाथ
यह मान्यता है कि इससे पहले 6 शिव द्वारा स्थापित तथा बाद के 6 गोरखनाथ जी द्वारा स्थापित शाखाएँ थी इन दोनों को मिलाकर बारह पंथी शाखा की स्थापना हुई और मुख्य संस्थापक गोरखनाथ जी थे।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि नाथ पंथ सम्प्रदाय मुख्यतः गोरखनाथ जी द्वारा स्थापित किया गया था। गोरखनाथ शाखा में दो प्रकार के साधु देखने को मिलते है।
1. कनफटा साधु
2. ओघड़ साधु
कानफाड़ कर जो मुद्रा धारण करते हैं वे साधु कनफटा साधु कहलाते है और जो साधु कान चीर कर मुद्रा धारण नहीं करते हैं वह ओधड़ साधु कहलाता है। इस प्रकार नाथ पंथ में साधुओं की दो श्रेणियाँ प्रतिष्ठित है पहला कनफटा और दूसरा ओघड़। जिस साधु ने कानफाड़ कर मुद्रा (कुण्डल एवंदर्शन) धारण की हुई है तो नाथ पंथ में यह माना गया है कि उस साधु ने ब्रहा सक्ष साक्षात्कर कर लिया है। यहीं कारण है कि नाथ पंथियों ने कनफटा साधुओ को सम्मान देते हुए उन्हें ओघड़ से सर्वोच्च माना और उन्हें यह सम्मान दिया कि ओघड़ साधु उन्हें सर्वोच्च एवं सर्वश्रेष्ठ के रुप में उनका आदर मान करे। कनफटा साधुओं को भी यह अधिकार दिया गया है कि वे ओघड़ साधुओ से सम्मान प्राप्त करने के अधिकारी है। कनफटासाधुओ को भी यह अधिकार दिया गया है कि वे ओघड़ साधुओं से सम्मान प्राप्त करने के अधिकारी हैं। कनफटा साधु पूजनीय साधुओं की श्रेणी में शामिल है औघड़ साधुओं को इस पूजनीय श्रेणी में स्थान नहीं दिया गया है।
नाथ पंथ विश्वव्यापी है इसका विस्तार भारत से बाहर नेपाल तिब्बत, पाकिस्तान के मक्का मदीना तक देखा गया है। गोरखनाथ जी ने नेपाल तथा तिब्बत के देशों में तपस्या की थी तो चौरंगीनाथ जी ने भी तिब्बत तथा मक्का मदीना तक अपनी तपस्या का विस्तार किया था। इन देशों में नाथ पंथ के मठ एवं पवित्र साधना स्थल आज भी विद्यमान है।
भारत में सम्पूर्ण भारत अर्थात् भारत के लगभग सभी राज्यो में नाथ पंथ का विस्तार देखा जा सकता है। 12 पंथो में विभक्त नाथ सम्प्रदाय के मठ तथा अनेक महापुरुषों की तपस्थली देखी जाती है।
नाथ पंथियो की मुख्य साधना स्थली भारत के उतराखण्ड राज्य में हरिद्वार तथा उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर में गोरखनाथ मन्दिर है। पश्चिमी भारत में गोरखनाथ शाखा के साधुओं को धर्मनाथी तथा अन्य भाग में कनफटा था गोरखनाथी नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है।
नाथ पंथ विभिन्न नाम जैसे योगी सम्प्रदाय, सिद्ध सम्प्रदाय तथा कौल मत एवं अवधूत मत से भी प्रसिद्ध है। इसका तात्पर्य यह है कि नाथ पंथ तथा उक्त सभी सम्प्रदाय/मत ये दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। अवधूत सम्प्रदाय में अवधूत शब्द का अर्थ लिया जाता है" स्त्री रहित या माया प्रप्रंच रहित। 'सिद्ध सिद्धान्त पद्धति नामक नाथ सम्प्रदाय के ग्रन्थ में एक श्लोक के माध्यम से अवधूत शब्द का अर्थ इस प्रकार बताया गया है' सर्वानप्रकृति विकारण वधु नोतीत्य अवधूत' अर्थात् जो समस्त प्रकृति विकारों को त्याग देता है या झाड़ देता है वह अवधूत है।
बौद्ध तथा जैन धर्म के सन्तो के नाम के आगे भी नाथ शब्द का प्रयोग किया है। जैन धर्म में कुछ सन्त जैसे भीननाथ और पारस नाथ इनके नाम के आगे नाथ शब्द को जोड़ा गया है। मत्स्येन्द्रनाथ जी के समय जो चार सम्प्रदाय थे, ये दोनों ही सन्त उस समय के नाथ सन्तों की सूचि में देखे जाते है। लेकिन ये कनफट साधुओं की तरह कुण्डल तथा वेशभूषा धारण नहीं करते हैं और ना ही हठ योग साधना का पालन करते हैं वर्तमान में भी देखा ज सकता है कि सभी जैन सन्त महावीर को भगवान मानते हैं और भगवान महावीर की शिक्षा का ही प्रचार प्रसार करते हैं, अब उनके नाम के साथ नाथ शब्द भी नहीं जोड़ा जाता है।
नाथ पंथ की 12 शाखाएं
नाथ पंथ में गोरखनाथ द्वारा जो बारह शाखाए स्थापित की गई थी उनको बारह-पंथी काह गया। बारह पंथी विस्तार से इस प्रकार वर्तित की जाती है।
सतनाथ पंथ
ब्रह्मा जी को इस पंथ का प्रर्वतक माना गया है। मान्यता यह है कि सत्यनार्थ ही सतनाथ पंथ के प्रर्वतक हैं। संतनाथ पंथ के मानने वाले सन्तों को ब्रह्म योगी कह कर सम्बोधित किया जाता है क्योंकि यह धारणा रही है कि ये ब्रह्म को अपना ईष्ट मानते है तो ये ब्रह्म योगी है। उड़ीसा के भुवनेश्वर नामक स्थान पर सतनाथ पंथ की प्रधान पीठ है। सतनाथ पंथ संख्या में 31 है।
रामनाथ पंथ
श्री रामचन्द्र जी रामनाथ पंथ के प्रर्वतक है। गोरखपुर जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश राजय में स्थित है, वहाँ रामनाथ पंथ की प्रधान पीठ है। रामनाथ की संख्या 61 है।
धर्मनाथ पंथ
इस पंथ के प्रर्वतक धर्मराज युधिष्ठिर को माना गया है। धर्मनाथ पंथ की मुख्य पीठ दुल्लुदेलक नामक स्थान पर है, यह स्थान नेपाल में स्थित है। धर्मनाथ पंथ की संख्या 15 है। भारत में भी इस पंथ की पीठ हे जो कि कच्छ के घिनोधर नामक स्थान पर स्थित है यह गुजरात राज्य के अन्तर्गत आता है।
लक्षमणनाथ पंथ
लक्षमणनाथ पंथ को ही नाटेश्वरी पंथ भी कहा जाता है। इस पंथ का प्रवर्तक लक्षणम ही को माना गाया है।
लक्षमणनाथ पंथ का मुख्य स्थान पंजाब के गोरर्खाटल्ला (झेलम) में है। लक्ष्मणनाथ पंथ का समबन्ध दरियानाथ पंथ तथा दुलनाथ पंथ से भी बताया जाता है। लक्ष्मण नाथ पंथ संख्या में 43 है।
दरियानाथ पंथ
इस पंथ के भूल प्रर्वतक गणेश जी माने गए है दरियानाथ पंथ का नाम कन्हड़ पंथ पड़ गया जिसके पीछे यह मान्यता कि दरियानाथ पंथ के विषय में गोरखपुर में सुनी परम्परा से इसका नाम कन्हड़ पंथ पड़ा है। कच्छ को मानफरा इसका प्रधान स्थान रहा. ये संख्या में 10 माने गए है।
गंगानाथ पंथ
इस पंथ का मूल प्रर्वतक भीष्म पितामह को माना गया है। मुख्य पीठ जखबार नामक स्थान है जोकि पंजाब राजय के जिला गुरुदासपुर में आता है। इस पथ की संख्या 6 है।
वैराग पंथ
इस पंथ के संस्थापक भर्तृहरि जी माने गए है। राजस्थान के नागौर में राताढुंढा नामक स्थान में इस पंथ की प्रधान पीठ है। इस पंथ का सम्बन्ध भोतंगीनाथ पंथ से भी बताया जाता है। इनकी संख्या 124 है।
रावल या माननाथ पंथ
गोपीचन्द जी माननाथ पंथ के मुख्य प्रवर्तक थे। आज इस पंथ की पीठ राजस्थान प्रदेश के जोधपुर के महामन्दिर नामक स्थान पर बताई गई है। भाननाथ पंथ की संख्या 10 है।
जालंघरिया पंथ/पागल पंथ
पागलपंथ के संस्थापक चौरगीनाथ को माना गया है। पागलपंथ की पीठ हरियाणा के रोहतक जिले के अस्थल बोहर नामक स्थान पर है। चौरगीनाथ जी को ही पूरण भगत कहा गया है। इनकी संख्या 4 है।
आई पंथ
गुरु गोरखनाथ जी की शिष्या भगवती विमला देवी थी, वह आई पथ की मूल प्रवर्तिका थी। आई पंथ की मुख्य पीठ स्वं हरिद्वारा में स्थित है। बंगाल में दिनाजपुर जिले में जोगी गुफा में मुख्य पीठ है। यह जोगी गुफा गोरखकुई के नाम से भी प्रसिद्ध थी। मस्तनाथ जी से पूर्व आई पंथ से सम्बन्धित साधु अपने नाम के पीछे आई शब्द का प्रयोग करते थे लेकिन मस्तनाथ जिनके गुरू नरमाई नाथ रहे. उन्होंने अपने नामक साीि आई के स्थान पर 'नाथ' शब्द का प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया था। उसके बाद से आई पंथ के सभी सन्तों ने आई शब्द के स्थान पर नाथ शब्द अपने नाम के बाद जोड़ना प्रारम्भ कर दिया जो आज तक प्रचलित है। आई पंथ का सम्बन्ध घोड़ा चौली से भी जोड़ा जाता है। इनकी संख्या 10 है।
कपिलानी पंथ
गढ़वाल के राजा अजयपाल ने कपिलानी पंथ की स्थापना की थी। कपिल मुनि कपिलानी पंथ के मुख्य प्रवर्तक बताए गए है। बंगाल में गंगानगर नामक स्थान है जो इस पंथ का प्रधान स्थान है। इस पथ की एक अन्य पीठ कोकलकता के समीप दमदभगोरखवंशी स्थित है। इनकी संख्या 26 मानी गई है।
धजनाथ पंथ
हनुमान जी इस पंथ के मूल प्रर्वतक माने जाते है। वर्तमान में धजनाथ पंथ की पीठ अम्बाला में स्थित है। इस पथ की संख्या 3 है।
आगेन्दल कर ये 12 पंथ भी अनेक उपशाखाओं में विभकत हो गया। जैसे पायलनागिरी कायिकनाथी उदयना थी, आचारपंथ चर्पटनाथी, फीलनाथी गैनी, निरंजननाथ वरजोगी, नायरी कापाय, उर्धनारी कामभज अमरनाथ वरजोगी, नायरी का पाय, उर्धनारी कामभज, अमरनाथ, पाद्ध, अमापंथी तारकनाथ, कभीदास भृंगनाथ, अभापंथी आदि। समपूर्ण भारत वर्ष में इनका विस्तार देखा जाता है।
साराशतः उक्त विवरण को आधार बनाकर यह कहा जा सकता है कि नाथ पंथ को प्रवर्तन किया उन्होंने नाथ पंथ को बारह पंथ / शाखाओं में विभक्त कर, एक साथ इन बारह शाखाओं को सम्मलित कर नाथ पंथ को सगठित किया। ऐसी धारणा हे कि गोरखनाथ ने नाथ पंथ का बारह शाखाओं में विभाजित करके संगठित रूप देते समय छः शाखाएं शिव पंथ के समय और छः शाखाएं गोरखपंथी की एक साथ रखी ताकि एक साथ चल कर नाथ पंथ एक मजबूत सम्प्रदाय बन कर योग का प्रचार-प्रसार तथा लोक कल्याणकारी कार्य कर सके। यह सत्य है कि इन बारह पथों के अपने-2 गुरु है अपने 2 सिद्ध स्थान है अपने-2 मठ है अपने-2 गुरुओं की तपोभूमि है लेकिन फिर भी ये 12 पंथी गोरखनाथ के अनुयायी है, गोरखनाथ की साधना पद्धति (हठ योग) द्वारा साधना करते है, और गोरखनाथ को अपना गुरू, नाथ पंथ का संस्थापक मानते है। नाथ पंथी यह कहते है कि उनका गुरु गोरखनाथ है उनका मुख्य ग्रन्थ (हठयोग प्रदिपिका) नाथ ग्रनी है, गोरक्ष सिद्धान्त पद्धति है और वे हठ योग द्वारा अपनी साधना करते है।
नाथ पंथ योगियों का मुख्य उद्देश्य हठ योग साधना के द्वारा आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करना है।
नाथ पंथी हठ योगी पंथ है, साधना यात्रा में योग से जो सिद्धि प्राप्त होती है उसका प्रयोग ये नाथ पंथी जन कल्याण तथा लोकल्याण में करते हैं, जन-जन को स्वास्थ्य की मजबूती कैस हो इसकी जागरूकता प्रदान करते है। इतिहास में प्रमाण है कि किस प्रकार गोरखनाथ चौरगीनाथ मस्तनाथ आदिनाथ पंथ योगियों ने अपनी योग तपस्या से प्राप्त सिद्धियों की जनकल्याण कार्यों में प्रयोग किया है। किसी प्रकार तत्तकालीन समय में इन सिद्ध नाथ योगियों ने आम जनता को भयानक रोगों से मुक्ति का मार्ग दिखाया था। उदाहरणार्थ मठ, अस्थल बोहर की जनश्रुतियाँ इस उक्त बात का प्रमाण है। जन श्रुतियाँ सत्य पर आधारित है, जन श्रुति हमें हमारे पूर्वजों से सुनने को मिली जो सत्य घटनाएं थी। पीढ़ी दर पीढ़ी चलते 2 एक समय वे जनश्रुति बन गई लेकिन उनकी सत्यतता पर तनिक भी संदेह नहीं किया जाना चाहिए।
@Dr. Raghavendra Mishra
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