Thursday, 22 May 2025

 ज्ञान की ज्योति आदि शंकराचार्य

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

जब धर्म डगमगाने लगा था,
वेदों का स्वर मुरझाने लगा था।
संशय से भर गया था जीवन,
सत्य ढूँढता था हर मन।

तब दक्षिण भूमि में कालडी गांव,
उतरा ज्ञानस्वरूप महान।
शिवगुरु-आर्यंबा के द्वार,
जग में आया ब्रह्म अवतार।

बालक था, पर बुद्धि विशाल,
वेदों का कर लिया रसाल।
गंगातट पर माँ को त्याग,
संन्यास पथ चुना बिन राग।

गोविन्दपाद की चरण शरण,
बना वेदांत का अमर वरण।
केदार, काशी, नर्मदा धार,
चल पड़ा ज्ञानी ब्रह्म अपार।

भाष्य रचे जिनकी लेखनी से,
ब्रह्मसूत्र हो गए सहज समझ से।

गीता में देखा कर्म का ध्यान,
उपनिषदों में अद्वैत महान।

ईश-कठ-केन, मुण्डक-प्रश्न,
बृहदारण्यक, छांदोग्य विशद।
उपदेश किया आत्मबोध का,
जीव-ब्रह्म हैं एक शोध का।

विवेकचूड़ामणि रत्न समान,
तत्त्वबोध में दर्शन महान।

उपदेशसाहस्री गाता यंत्र,
वाक्यवृत्ति कहे अहं ब्रह्म मंत्र।

स्तुतियों की भी सजी बहार,
भक्ति में झलके ज्ञान अपार।

भज गोविन्दम् सहज संसार,
मोहमुद्गर मोह का संहार।

कनकधारा माँ लक्ष्मी का वर,
शिवानंद लहरी गूंजे हर घर।
सौन्दर्य लहरी श्रीविद्या का प्रकाश,
श्लोकों में छिपा अद्वैत का राश।

गौरी, गणेश, गंगा स्तुति,
हर भाव में सम ब्रह्म सृष्टि।
भक्ति और ज्ञान का संगम,
शंकर ने किया सनातन संघम।

चारों दिशाओं में मठ बनाए,
धर्म ध्वजा फिर से फहराए।

श्रृंगेरी, द्वारका, पुरी, ज्योतिर्मठ,
स्थापित किए सनातन के पथ।

पद्मपाद, सुरेश्वर ज्ञानी,
तोटक, हस्तामलक सयानी।
चार स्तंभ जिन पर धर्म बड़ा,
शंकर की शक्ति है अडिग खड़ा।

काशी, कांची, नालंदा द्वार,
किया शास्त्रार्थों का विस्तार।
मण्डन मिश्र भी शीश झुकाए,
अद्वैत ज्ञान को गुरु मान पाए।

तीस वर्ष में कर चमत्कार,
सैकड़ों ग्रंथों का भंडार।

मोक्ष का पथ, आत्मा का सार,
ब्रह्म के संग जीव का हार।

केदार की गुफा में विलीन,
शंकर हो गए ब्रह्म में लीन।
पर आज भी गूंजे वाणी जिनका,
शाश्वत गाथा, सुने ज्ञानी उनका।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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