गुरु अर्जन देव भक्ति, बाणी और बलिदान की अमर गाथा
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)
भारत की पुण्य भूमि पर, बैसाख माह की रश्मि छाए,
रामदास के घर बीबी भानी, प्रभु-प्रेरित रत्न की आए।
संतों की छाया में पला, ज्ञान-सुधा का प्यासा था,
सिख परंपरा का भाव नूतन, पंचम दीपक जैसा था।
पिता रामदास ने देखी, सहज बुद्धि और त्याग की रेखा,
विनय, विचार और सेवा में, अर्जन को ही गद्दी लेखा।
1581 में गुरु बना, सतनाम का वह पुजारी,
जगत-ज्योति बन फैला प्रकाश, बना सिखों का हितकारी।।
अमृतसर के शांत सरोवर में, धर्मसरोवर का संकल्प लिया,
हरमंदिर साहिब निर्मित कर, जग को मानवता का कल्प दिया।
ना ऊँच-नीच, ना भेदभाव, सबके लिए द्वार खोले,
जहाँ सभी संप्रदाय मिलें, ऐसी दीवाली बोले।।
संत वाणी का रत्नाकर, सदैव रहे यह भाव बना,
गुरु वचन, भक्तों के शब्द, एक सूत्र में जो जोड़ घना।
1604 में ग्रंथ हुआ, ‘आदि ग्रंथ’ नाम पड़ा,
हरमंदिर के सिंहासन पर, ज्ञान का समुद्र खड़ा।।
सुख की मणि, सुखमनी साहिब, उनके कर-कमलों से जन्मी,
भक्ति, संतोष और ध्यान की, मन में गूँजे सुर लहरी।
जिसने इसे हृदय लगाया, वह दुखों से पार हुआ,
संत अर्जन की उस बाणी से, मानव का उद्धार हुआ।।
पर था कालचक्र कठोर, म्लेच्छों का शासन था भारी,
जहांगीर ने धर्म दबाया, किया अत्याचार की सवारी।
गुरु को बुलाया दरबार में, इस्लाम ग्रहण की माँग किया,
गुरु ने कहा, "सिर झुके ना, धर्म नहीं त्यागे मेरा जिया।।"
गर्म तवे पर बैठाया गया, उबलते जल में डाला,
पर गुरु का शांत धैर्य देख, क्रूरता भी कांपे पाला।
"तेरा किया मीठा लागे", यह अंतिम कह दी वाणी,
दिया शरीर मगर न छोड़ी, धर्म अमर है जानी।।
सिख धर्म के इस दीपक ने, अंधकार में ज्योति जलाई,
मिरी-पीरी के सूत्र रचकर, हरगोबिंद को राह दिखाई।
गुरु अर्जन बलिदान नहीं, वह तो सिखों का प्राण बना,
बाणी, भगति, बल और ज्ञान, सबका संगम महान तना।।
हे पंचम गुरु, तुझे नमन, तेरी बाणी में अमृत बहे,
तेरी पीड़ा, तेरी वाणी, हर हृदय में दीपक कहे।
धर्म बचाया, जाति मिटाई, प्रेम-भक्ति की राह बनाई,
तेरे चरणों की रज बनूँ मैं, यही विनती करूं दुहाई।।
@Dr. Raghavendra Mishra
संपर्क सूत्र : 8920597559
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