Thursday, 22 May 2025

सौंदर्य लहरी आदि शक्ति की अमृत धारा

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

आदि गुरु की वाणी बनी, श्रद्धा की चिर स्नेहधारा,
लिखी गई जब भाव से, सौन्दर्य लहरी गंग सारा।
शब्द बने वो मंत्र तुल्य, अक्षर-अक्षर दीप,
देवी की महिमा झलकती, जैसे चंद्र की नीरज सीप।।

त्रिपुरा सुन्दरी अम्बे, शिवशक्ति की तू ही माया,
तेरे रूप-विलास में ही, छिपी ब्रह्म की छाया।
कुण्डलिनी की रेखा तू, चक्रों की तू प्रेरना,
ध्यान लगे जब चरणों में, मिलती दिव्य चेतना।।

नेत्रों से बहती करुणा, अधरों में मधुबानी,
नख से केश तक ज्योतिर्मय, तू ही सृष्टि की रानी।
स्तनयुगल से त्रिवेणी, नाभि में अमृत कूप,
ललाट से शोभित बिन्दु, ब्रह्मा-विष्णु के रूप।।

श्लोकों में सौंदर्य बसा, पर तत्त्व गहन अपार,
मंत्र-साधना, ध्यान-योग, सबमें तेरा विस्तार।
श्रीचक्र का रहस्य तू, नवावरण का वरन,
तेरे चरणों में समर्पित, भक्ति का हर यज्ञ करन।।

आनन्द लहरी तांत्रिक राग, शक्ति की परम पुकार,
सौन्दर्य लहरी काव्यसार, रूप का दिव्य विचार।
कभी तू रमा, कभी काली, कभी वाणी की मूरत,
तेरे चरणों की रेखाएँ, करती हैं जन्मों को पूरत।।

ब्रह्मज्ञान की सीढ़ी, शंकर की तू साधना,
तेरी स्तुति से मिल जाए, चित्त की उत्तम आराधना।
हे ललिता! हे अन्नपूर्णा! हे श्रीविद्या की जगदंबा,
तेरी कृपा से दिख रहा, मेरे आत्मा में हो तुम अम्बा।।

काव्य नहीं ये केवल माँ, यह साधक की साधना है,
हर श्लोक में तव रूप, हर अक्षर उपासना है।
शक्ति का यह जलधि स्तोत्र, ज्ञान का अनन्त सागर,
सौन्दर्य लहरी नाम अमर, देवी भक्ति का अमोघ नागर।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

No comments:

Post a Comment