Tuesday, 13 May 2025

कश्मीर शैव दर्शन की आचार्य परंपरा

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

22.

कश्मीर शैव आचार्य परम्परा की अखण्ड शुभ गाथा

आदि शिव की दिव्य विमर्श से, जागी तत्त्वों की भाषा,
मालिनी विजय का स्वरूप बना, जब फूटी ब्रह्म की आशा।
श्रीकण्ठनाथ की दीक्षा से, चित्त हुआ जब जागृत,
जग में प्रकटे दुर्गानन्द, शिवज्ञान के वितरक शुभामृत।।

त्रयम्बकनाथ ने साधना की, तंत्रों में लहराया प्राण,
आत्मस्वरूप की व्याख्या में, खोले चेतन के विधान।
फिर वासुगुप्त ने मौन तपस्या में, पाया शिवसूत्रों का ज्ञान,
स्पन्द की लहरों में प्रतिध्वनित हुआ, अद्वैत तत्त्व का गान।।

कल्लट ने व्याख्या रची, शिवसूत्रविमर्शिनी में अर्थ सजे,
सिद्धान्तों के पुष्प गुंथे, अनुभव के हार बजे।
सोमानन्द की दृष्टि में, चमकी शिवदृष्टि अपार,
प्रतिभा से भरी प्रत्यभिज्ञा, हुआ अद्वैत का विस्तार।।

उत्पलदेव ने हृदय से गाया, ‘ईश्वर प्रत्यभिज्ञा’ का गान,
भक्ति और तत्त्व का संगम, अद्वैत में घुला विज्ञान।
फिर अभिनवगुप्त महाज्ञानी, तंत्रालोक के दीप जले,
सौंदर्य, रस, तत्त्वविचार सब एक शिव में पले।।

परात्रिशिका की व्याख्या में, शक्ति शिव का रहस्य बिखेरा,
अभिनवभारती की छाया में, नाट्यशास्त्र का नव सवेरा।
क्षेमराज ने शिष्य बन, प्रत्यभिज्ञा का सार दिया,
शिवसूत्रविमर्शिनी, स्पन्दसंदोह से जगत कल्याण किया।।

योगराज ने साधना पथ पर, विज्ञान भैरव को पढ़ा,
आत्मबोध के सरल पथ में, अगम्य रहस्य से बढ़ा।
कालांतर में लक्ष्मण जू ने, फिर यह अमृत सुधा बहाई,
कश्मीर शैव का मर्म बताकर, विश्व में चेतना समाई।।

त्रिक, कौल, स्पन्द, प्रत्यभिज्ञा सबकी एक रसधारा,
शिव ही चैतन्य, शिव ही जीव, यही तत्त्वज्ञान है हमारा।
कश्मीर की हिमगिरि से निकली, इस परंपरा की बानी,
शिवदृष्टि की अखंड धारा, सदा रहे जग में सुज्ञानी।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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