मार्तण्ड सूर्य मन्दिर जीवन हमारा
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
चमके एक दीप कश्मीर की छाया में,
सात किरण विद्यमान सूर्य के काया में।
कश्मीर की भूमि सदाशिव के माया में,
सनातनी है मार्तण्ड अनंत के साया में॥१॥
उत्तम राजा थे महान धर्म ज्ञाता,
ललितादित्य थे मन्दिर के निर्माता।
पत्थर पर उकेरा वैदिक सांचा,
सूर्य का मन्दिर, भक्ति से नाता॥२॥
मट्टन की गोदी में खड़ा अजस्र,
स्तंभों का संगीत, वास्तु का रस।
ग्रीक, गुप्त, कश्मीरी भरत तत्त्व
मंदिर बोले मैं हूँ साक्षी सनातन सत्त्व॥३॥
न स्वर्ण कलश, न दीप सजे,
फिर भी वहाँ प्रभा की लहर बहे।
खंडहर में भी सूरज मुस्काए,
दुष्ट ने तोड़ा, पर तेज न जाए॥४॥
शिखरों पर अरुणोदय की छाया,
हर पत्थर बोले प्राची की माया।
मार्तण्ड मृत्यु से भी परे हैं,
सप्तरश्मि रथ पर अचल चले हैं॥५॥
कश्मीर की धरा का मणि मुकुट,
संस्कृति का दीप, भारत का भृकुट।
आओ जनों! यह तीर्थ जागृत है,
सनातन से शिवात्मा हिमादृत है॥६॥
जैसे कोणार्क, जैसे मोढेरा,
यह भी है आदित्य का सवेरा।
पुनः गूंजे कश्मीर में वैदिक धारा,
मार्तण्ड सूर्य मन्दिर जीवन हमारा॥७॥
@Dr. Raghavendra Mishra
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