संघ की दीपशिखा
(RSS के इतिहास, सरसंघचालकों व सरकार्यवाहों पर आधारित कविता)
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
जय जननी भारत माता, सदा तुझको वंदन है,
संघ दीप की रचना करने, करते सब अर्पन है।
नवभारत का नव युग आया, नवतेजों की धारा,
संघ बना उस धरा पर जैसे, उगता अमर सितारा।।
नागपुर की धरती बोले उठो स्वाभिमानी!
केशव ने जलाई मशाल, कहे हिन्दू की कहानी।
संघ शाखा बनें स्तंभ सब, अनुशासन की रेखा,
एक राष्ट्र, एक चेतना की, ओजस्वी थी लेखा।।
श्रीगुरुजी के चिंतन में, गहराई थी भारी,
संघ का विस्तार उन्होंने, पथदर्शी बन सवारी।
धर्म, संस्कृति, राष्ट्रवाद का, दर्शन फैलाया,
संघ कार्य को उन्होंने, तप से पुष्पित दिखाया।।
वाणी में थी दृढ़ता उनकी, संकल्पों में ज्वाला,
जनसंपर्क, सेवा का पथ, देवरस ने ढाला।
आपातकाल में सत्य की, भारी अलख जगाई,
संवादशील नीति से, संघ पहुँचा हर भाई।।
गंगाजल-सी निर्मल वाणी, थे धनी बुद्धि के,
शिक्षा, संस्कार, विवेक, थे सभी शुद्धि के।
विज्ञान और धर्म समरस हो, यह उन्होंने कहा,
संघ बना आस्था और युक्ति का एक पथ बहा।।
सुदर्शन ने भान कराया, स्वदेशी हो आधार,
तकनीकी, आत्मनिर्भरता यही देश का संसार।
नवभारत के नव निर्माण की रखी नींव उन्होंने,
राष्ट्र प्रेम की दृढ़ जड़ों को दिया सींच उन्होंने।।
नवयुवकों में ऊर्जा भरी, राष्ट्र चिंतन धार,
समरसता, ग्रामोदय में लाये नव विस्तार।
संवाद-संगठन और विज्ञान की नयी धारा,
उनके नेतृत्व में संघ बना विश्व का उजियारा।।
रानडे से होसबले तक, हर एक की गाथा,
संघ का संचालन करें, निष्ठा से माथा।
पिंगळे, मुले, वेंकटेश, विद्वान रज्जू भैया,
संघ रूपी यज्ञ में बने समर्पण रूपी नैया।।
जोशी, भागवत, भैय्याजी और होसबले वीर,
हर जन को कर जोड़े, बाँटे संगठन का खीर।
सेवा, शिक्षा, संवाद की, अग्नि में तपते हैं,
हर क्षेत्र में राष्ट्रहित के लिए लड़ते रहते हैं।।
संघ न केवल शाखा भर है, न केवल घोष वंदन,
संघ तो है आत्मा भारत की, चिर निष्ठा का नंदन।
सारथी हैं ये संचालक, धर्मयुद्ध के रथ पर,
कर्मपथ पर बढ़ते जाएँ, प्रेरक अमर पथिक स्वर।।
वंदे मातरम्
भारत माता की जय
@Dr. Raghavendra Mishra
8920597559
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