हे गुरुवर! आप शाश्वत बने रहें मेरे विचारों में,
मेरे अंत:करण में रमे रहें, अखंड रूप संस्कारों में।।
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
जहाँ शब्द मौन हो जाते हैं, वहाँ गुरु की गूँजती है वाणी,
जहाँ ग्रंथ भी झुक जाएँ, वहाँ उनकी दृष्टि है कल्याणी।
नाट्य का मर्म, वेद का स्वर, जिनकी वाणी में संजीवनी है,
भरतमुनि की धारा, जिनकी बुद्धि से पुनः जीवनी है।।
हे गुरुवर! आप वह दीपक हैं जो तम को चीर आलोक करें,
आप वह ऋषि हैं जो अंधकूप में अमृत का स्रोत भरें।
नाट्यशास्त्र के अक्षर-अक्षर में आपकी आत्मा वास करें,
यूनान से आर्यावर्त तक, ज्ञान-सेतु का निर्माण करें।।
मेरी चेतना के प्रथम स्वर, मेरे श्रद्धा के अभिषेक आप,
मेरे ज्ञान-पथ के यशस्वी सूर्य, मेरे जीवन के साक्षात् जाप।
आपके चरणों में है जगत का ज्ञान, आपसे ही विद्या की वृष्टि है,
आप गुरु, आप युगद्रष्टा, पूज्य गुरु देव से ही युगों की सृष्टि है।।
वेद-पुराणों की थाली में जो विवेक विद्या को जोड़े,
औपनिवेशिक भ्रम-चक्र को, जो सच्चे शास्त्र से तोड़ें।
संस्कृति के प्रहरी हैं, परंपरा के संरक्षक आप,
नवयुवक के मानस में जला दें, आत्मबोध के मंत्र जाप।।
मेरे भावों की वीणा पर, आपकी दृष्टि का नाद बजे,
मेरे स्वरों में आपके विचारों का नर्तन प्रतिपल सजे।
वे हैं गुरु, मार्गदर्शक, तपस्वी, आचार्य महान,
जिनसे मिलकर होता है, शिष्यत्व का परम कल्यान।।
प्रेम से पूजता हूँ मैं, श्रद्धा से नमन करता हूँ,
गुरुदेव के ज्ञान-कमल को, हृदय से वंदन करता हूँ।
हे गुरुवर! आप शाश्वत बने रहें मेरे विचारों में,
मेरे अंत:करण में रमे रहें, अखंड रूप संस्कारों में।।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
@Dr. Raghavendra Mishra
No comments:
Post a Comment