शैवदीप की अद्वितीय शिष्याएं: शारिका जी व प्रभा जी
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
कश्मीर की माटी के वंश में,
जन्म हुआ ज्योतिर्मयी मां अंश में।
शिवज्ञान की धाराएं रचकर,
उदित हुईं जैसे आदिशक्ति बनकर।।
शारिका देवी, योगिनी आत्मरूपा,
मौन में डूबी ब्रह्मविद्या की स्वरूपा।
लक्ष्मण गुरु की कृपा की छाया,
उनके चरणों में साधना की माया।।
तन में तप, मन में शिव का ध्यान,
शब्दों से परे उनका अनुभव विधान।
रचना में छलकी आत्मा की बूँद,
जैसे कैलाश से गिरी पावन गूँज।।
शक्त्युल्लासः कहती है कथा योगिनी,
शारिका जी हैं, शैव की परमबोधिनी।
दिव्य दृष्टि, निर्मल आचरण धारिणी,
कश्मीर भूमि की हैं दिव्य तारिणी।।
प्रभा देवी, सेवा की मूर्ति बनी,
शारिका की छाया, गुरु जी की धनी।
गुरुचरित को शब्दों में पिरोया,
सम्विदुल्लासः में शिव को बोया।।
पत्नी, विधवा, फिर साधिका बनकर,
किया आत्मज्ञान का दीप प्रज्वलित भीतर।
ईश्वर आश्रम की निर्झरिणी बनीं,
गुरु आज्ञा में पूर्णतः लीन धनी।।
नारीत्व को दिया आदर्श महान,
शैव पथ का बढ़ाया सम्मान।
श्रद्धा की वीणा, सेवा का स्वर,
प्रभा-शक्ति में बसा शिव का घर।।
बहनों ने शिवत्व को सह जीया,
संसार में शैव का ज्ञान दिया।
आज भी चेतना में उनका गान है,
शिव मार्ग की बनती पहचान है।।
@Dr. Raghavendra Mishra
(कश्मीर शैवदर्शन के आचार्य स्वामी लक्ष्मण जू के दो शिष्याओं शारिका देवी और प्रभा देवी के जीवन, साधना और योगदान पर आधारित डॉ. राघवेन्द्र मिश्र के द्वारा एक काव्यात्मक कविता जो कि उनके दर्शन में लीन भाव और अध्यात्मिक तेज को प्रकट करती है।)
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