ज्ञानहीन वामपंथी दीमक
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार
जब दीप जलाया भारत ने, विज्ञान वेद की थाती ने,
उस प्रकाश से काँपे जग के, संशय और अघाती ने।
किन्तु छाया में छिपकर कुछ, छल के पथ पर आए,
ज्ञान के वेश में विषधरों ने, चुपचाप घोंसले बनाए।।
न था युद्ध, न कोई सेना, पर मंथन सा घात हुआ,
समता के छल शब्दों में, संस्कृति पर वज्रपात हुआ।
मूलों को बताया पाखंड, ध्वज को बना निशाना,
धर्म अफ़ीम है, यह कहकर, तोड़ा विश्वास का ठिकाना।।
वो कलम नहीं, खंजर हैं, जो ऋषियों का वध करे,
मूल ज्ञान को मिटा डाले, और ग़ज़नी का जप करे।
आर्य-द्रविड़ का भेद रचा, जातियों को बांटा,
नालंदा की आग छिपाकर, आक्रांताओं से नाता।।
गीता पर प्रश्न किए, गुरुकुल की मर्यादा तोड़े,
मनु के नियमों को कलंकित कर, झूठे संवाद जोड़े।
विश्वविद्यालय बना मंच, देश विरोधी भाषण का,
जहाँ ज्ञान नहीं, भ्रान्ति थी बोल ‘लाल बालन’ का।।
बना चरित्र विकृत वहाँ, जो कभी आदर्श रहा,
अब 'हिंदू' खलनायक है, दीमक का तर्क बहा।
विचारधारा की चाशनी में, वाम बन गए कार्टून,
जो बोले ‘राष्ट्र’ की बात कहीं, उसका बहाए खून।।
अब युद्ध न जंगलों तक था, शहरों में घुसे नक्सल,
NGO, मीडिया, न्यायपालिका तक फैला छलबल।
जनतंत्र का मुखौटा पहने, दिमागों में बीज बोया,
भारत तेरे टुकड़े हों इस नारे से राष्ट्र रोया।।
किन्तु तम कितना ही घना हो, सत्य न रुकता पथ में,
अग्निवीर जागे भीतर, फिर सजग हो धर्म रथ में।
अब चेतना की बात करो, जय ग्रंथों का उद्घोष हो,
वेद, गीता, और उपनिषद् फिर से जन-मन का जोश हो।।
यह युद्ध कलमों का है, यह समर विचारों का है,
यह दीमक भीतर पलता है, शत्रु सबके द्वारों पर है।
इसलिए हे भारतवंशी! अपने मस्तिष्क को पुनः सुधारो,
मेरा भारत पुनः उठेगा, भारत मां की जय पुकारो।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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