अघोरी परंपरा: आचार्य, पीठ और साधना पद्धति
लेखक: डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
भारतीय तांत्रिक साधना की विभिन्न धाराओं में अघोरी परंपरा एक रहस्यमयी, किंतु अत्यंत उन्नत साधना पद्धति है, जिसका मूल लक्ष्य अद्वैत की अनुभूति एवं मृत्यु भय का उच्छेदन है। इस शोध पत्र में अघोरी परंपरा के प्रमुख आचार्यों, पीठों, और उनकी साधना पद्धति का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। यह अध्ययन सांस्कृतिक, दार्शनिक एवं ऐतिहासिक दृष्टिकोण से इस परंपरा की महत्ता को रेखांकित करता है।
प्रस्तावना (Introduction):
भारत की अध्यात्मिक परंपरा में अनेक साधना मार्ग विकसित हुए हैं। इन सबमें अघोरी परंपरा अपनी रहस्यमयी साधना और कठोर तप से विशिष्ट स्थान रखती है। यह परंपरा शैव सम्प्रदाय की एक शाखा है, जिसका केंद्रीय तत्व “शिवोऽहम्” की अनुभूति है। अघोरी साधक शरीर, मृत्यु, सामाजिक वर्जनाओं आदि के पार जाकर आत्म-साक्षात्कार करते हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background):
अघोरी परंपरा का उद्गम प्राचीन काल में भगवान दत्तात्रेय से माना जाता है। वे इस परंपरा के आदिगुरु हैं। कालांतर में बाबा कीनाराम जैसे आचार्यों ने इस परंपरा को संरचित और व्यापक किया। उनके द्वारा रचित ‘विवेक सागर’ अघोर सिद्धांतों का आधार ग्रंथ माना जाता है।
प्रमुख आचार्य (Key Acharyas):
भगवान दत्तात्रेय:
- त्रिदेवों के अवतार माने जाते हैं।
- अघोर साधना के मूल रहस्यदाता।
बाबा कीनाराम (17वीं शताब्दी):
- अघोरी परंपरा के पुनर्संस्थापक।
- “विवेक सागर” नामक ग्रंथ की रचना।
- क्रींकुंड पीठ की स्थापना।
बाबा अवधूत नन्दनदास:
- समकालीन अघोरी संत।
- अघोर साधना को आधुनिक समय में प्रासंगिक बनाना।
प्रमुख अघोरी पीठ (Important Aghori Centres):
क्रींकुंड, वाराणसी:
- अघोरी परंपरा का मुख्य गद्दीपीठ।
- बाबा कीनाराम की तपस्थली।
- अघोरी दीक्षा, साधना और दर्शन का मुख्य केंद्र।
कामाख्या शक्तिपीठ (असम):
- तंत्र साधना का सर्वोच्च स्थल।
- शव-साधना, कपाल क्रिया जैसे अघोर अनुष्ठानों का स्थल।
- औघड़नाथ मंदिर, मेरठ:
- अघोरी साधकों की ऐतिहासिक उपस्थिति।
- महाकाल और तांत्रिक अनुष्ठानों का स्थान।
साधना पद्धति (Methods of Sadhana):
श्मशान साधना:
- मृत्यु के भय से पार पाने हेतु शवों के समीप ध्यान।
- भस्म लेपन और तुरीयावस्था का अभ्यास।
कपाल साधना:
- मानव कपाल (खोपड़ी) में पंचतत्त्व की एकता का प्रतीक।
- कपाल में भिक्षा एवं ध्यान।
मंत्र और तंत्र योग:
- “ॐ अघोरेभ्यो नमः” आदि बीजमंत्रों का प्रयोग।
- तांत्रिक शक्तियों का आह्वान।
दार्शनिक दृष्टिकोण (Philosophical Perspective):
अघोरी दर्शन अद्वैत वेदांत के अत्यंत व्यावहारिक और तीव्र रूप का उदाहरण है। यह संसार में किसी भी वस्तु को अपवित्र नहीं मानता। अघोरी का उद्देश्य ‘सर्वं शिवमयं’ की अनुभूति है। उनके लिए शरीर, सामाजिक रीतियाँ, मृत्यु – सभी माया के अंग हैं।
सामाजिक दृष्टिकोण (Social Relevance):
यद्यपि अघोरी परंपरा को आमजन में भय और असामाजिक व्यवहार से जोड़ा गया है, परंतु इसके भीतर करुणा, सेवा, और त्याग का गहन भाव निहित है। कई अघोरी पीठ आज भी समाज के वंचित वर्गों की सेवा में लगे हैं।
निष्कर्ष (Conclusion):
अघोरी परंपरा एक गूढ़, किन्तु अत्यंत उच्च आध्यात्मिक पथ है। इसके आचार्यगण एवं पीठों ने भारतीय तांत्रिक साधना को जीवित एवं सशक्त बनाए रखा है। मृत्यु, भय, और माया से पार जाकर शिवत्व की अनुभूति ही इसका अंतिम लक्ष्य है।
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