त्रिकूट शिखर पर दीप जले हैं, श्रद्धा के अंगार
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
त्रिकूट शिखर पर दीप जले हैं, श्रद्धा के अंगार,
जहाँ विराजें वैष्णवी माता, ज्योति जगे अपार।
बाणगंगा की धारा कहे, चरण पादुका गाथ,
हर शिखर, घाटी बोले जय माता दी एक साथ।।
शरणागत की रक्षा करती, देवी अन्नपूर्णा,
कभी काली, कभी सरस्वती, कभी लक्ष्मी पूर्णा।
गुफा में तीन पिंडियाँ, त्रिगुण रूप त्रिवेनी,
जहाँ दर्शन कर मुक्त हो जीव, कटे मोह के रैनी।।
पुराणों की वाणी गूंजे, स्कंद और देवी कथाएँ,
अर्जुन की भक्ति वहाँ पहुँचे, जहाँ सृष्टि झुक जाए।
राम ने जहाँ तप किया था, शक्ति का वर माँगा,
वहाँ आज भी भक्तों में, वही तेज है जागा।।
इतिहास गाए वैदिक स्वर, संस्कृति के साज,
राजाओं से लेकर ऋषियों तक, यह भूमि बनी राज।
शारदा पीठ का तेज समाया, माता की मुस्कान में,
संस्कृति, सभ्यता, योग-साधना सब त्रिकूट के धाम में।
गुफा की राह तप की राह, योगिनी प्यारी,
अर्धकुमारी की साधना में, कन्या रूप धारी।
हर डगमग पग में माँ का नाम, साधक की पुकार,
चलो उसी ओर जहाँ आत्मा से हो साक्षात्कार।।
ज्ञान भैरव की गहराई में, देवी तत्त्व समाया,
शिव की अर्धांगिनी शक्ति ने, योगमयी रूप पाया।
कुंडलिनी से लेकर ध्यान तलक, सब पथ यहीं से जाता,
जहाँ भक्ति हो योग में परिणत, वही वैष्णो माता।।
माता की भेंट न धन माँगे, न पद की कोई आस,
वो केवल भाव की भाषा समझे, करुणा का प्रकाश।
श्रद्धा से सब आएं भक्त जन, कटरा तक पुकार,
जय माता दी की गूँज चले, अम्बा हो तैयार।।
शास्त्रों ने भी शीश नवाया, वेदों ने की वंदना,
तांत्रिकों ने साधा स्वरूप, संतो ने की आराधना।
भक्ति की यह उच्च प्रतीति, शक्ति से पूर्ण नाता,
जहाँ पिंडियों में मां बसी हों, वही वैष्णो माता।।
मंदिर का संचालन जिसने, सेवा को धर्म बनाया,
श्राइन बोर्ड की छाया में, युगधर्म फिर से आया।
अस्पताल, पाठशाला में, माँ की छवि गान
सामाजिक सेवा में श्रद्धा, माँ करो मम कल्यान।।
हे वैष्णवी! त्रिकाल की तू, साधक की तू आस,
कश्मीर की धरती से, फैला तेरा प्रकाश।
शिव की तू आराध्य शक्ति, योगिनी तू महान,
तेरे दर पे मिटते हैं, दुखों के सब विधान।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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