पढ़-लिख के रोज़गार माँगीला
(शिक्षित बेरोज़गार युवाओं की पुकार)
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)
पढ़-लिख के रोज़गार माँगीला,
पर साथ में बहुत ज्ञान राखिला।
डिग्री के बोझा ढोवत बाटीं,
जब हो भूख, खाई चोखा बाटी ।।
मा-बाप के सपना पल पल टूटा,
रात-रात भर जागेला तन।
कोचिंग, परीक्षा, फारम से फूटा,
फेर भी खाली बा जीवन धन।।
चप्पल घिसे गली-गली में,
इंटरव्यू के भीड़ में खो गयल।
जबाब देई सदा, गूंगा शासन के,
हमार मेहनत हिटलर खा गयल।।
हम धरती के लाल हईं,
ना हाथ जोड़ब, ना झुकब अब।
अनशन पर बैइठल बानी,
जब तक ना मिल जाई सब।
सत्ता के सिंहासन सुन ले,
युवाशक्ति अब मौन ना रहिए,
हम रोटी के संग इज़्ज़त माँगी,
बस झूठे वादे ना कहिए।
हम ना माँगत भीख अइसे,
हम हक़ के सच्चा तलबगार,
क़लम उठाई त सरकारी फ़ाइलों में,
अब बाँटब हम क्रांति के वार।।
धूप-पानी सब सहेब हम,
जब तक ना जवाबी आई,
माई के गोद सुनी पड़ गई,
जब रोज़गार दूर भटकाई।
हम युवा हईं, लाठी बनेब,
जब नीति अंधी हो जाई,
एक दीया हम जलाएब अब,
जब अंधियारा सरकार पाई।।
पढ़-लिख के रोज़गार माँगीला,
कायर होके बहुत खराब लागिला।
सत्ता से सीधा सवाल करब,
नौकरी माग़ब, हम अब ना डरब।।
@Dr. Raghavendra Mishra
No comments:
Post a Comment