सनातन की ज्वाला, अखंड भारत का स्वप्न
(स्वातंत्र्यवीर सावरकर को समर्पित काव्य रचना)
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
जाग उठा भारत का भाग्य, जब सिंहनाद हुआ,
सावरकर की वाणी से सनातन का शंखनाद हुआ।
न धर्म की दीवारें थीं, न पंथों की परछाईं,
बस भारत माँ की गोद में एकता ही शुद्ध आई।।
सनातन सभी के लिए, ना कोई पंथ विशेष,
वह था संस्कृति का दीप, जो दे समरसता का संदेश।
जहाँ भूमि भारत की हो, वहीं मातृभूमि कहलाए,
और जहाँ तीर्थों की वंदना हो, वहां धर्मभूमि समाए।।
नसों में बहता था इतिहास का तेजस्वी संचार,
जिसमें झलकती थी चाणक्य, शिवाजी की पुकार।
नवयुवकों से कह उठे “वीर बनो, न रुदन करो,”
“राष्ट्र के हित में शत्रु से, पग-पग पर रण करो।।
“अखंड भारत” सपना नहीं, यह तो संकल्प हमारा है,
सिंधु से ब्रह्मपुत्र तक विस्तृत राष्ट्र सारा है।
गांधार, काबुल, लंका तक, जहां-जहां चरण राम का,
वह सब भारत की संतति हैं, यह विश्व भारत नाम का।।
उन्होंने कहा “धर्म कोई भी हो, पर राष्ट्र सर्वोपरि रहे,
रगों में दौड़ती भारतमाता की वाणी कभी न ढहे।
मंदिर हो या मस्जिद, सबको हो यह बोध,
भारत तेरी आत्मा है, कभी न हो यह अवरोध।।”
नहीं थे वे केवल क्रांति के, वे चिंतन के भी दीप,
उन्होंने गढ़े विचार जो आज भी हों हृदय संदीप।
उनका हिन्दुत्व न सीमित था, न क्षेत्रीय का नाम,
वह थे भारत की आत्मा, विद्या वैभव, उनका धाम।।
आज जब राष्ट्र पुकारता है, उठो, उस स्वर को सुनो,
वीर सावरकर की ज्वाला से राष्ट्रधर्म को चुनो।
अखंडता की उस भावना को फिर से जीवंत करो,
भारत को फिर एक बार, स्वाभिमानी अनंत करो।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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