बेरोजगारी गीत: शिक्षित युवा की पुकार
(धरने पर बैठे युवाओं की ओर से)
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)
धरती हिली है, नभ भी झुका है,
हिटलर का भी काफिला रुका है।
चौथा दिन है आज सत्याग्रह का,
युवाशक्ति आवाज है आग्रह का।।
पाँवों में छाले, दिल में अंगारे,
आँखों में सपनों की जोत है।
हम हैं वही जो देश बनाएं,
हमसे हो सरकार, हम वोट है।।
डिग्रियाँ लहराईं, पर नौकरी गुम,
सूखी आशा की हर डाली,
हमको ना अवसर, ना सम्मान,
फिर क्यों कहे ये सरकार निराली?
गीतों में हम पीड़ा गाएँ,
शब्दों में चिनगारी भरें,
सुन ले अब राजमहल में बैठे,
जनमन की बात से डरें।।
"रोज़गार दो, हक़ दो जीवन का!"
यही हमारा नारा है,
हर स्वर है आंदोलन बनता,
यही युवा को प्यारा है।।
ना हिंसा का, ना कोई जुल्म,
बस गीतों में संग्राम चले,
मुख्यमंत्री तक बात हमारी,
सत्यगान से अब पहुँच चले।।
धरती बोले, गगन पुकारे,
अब तो सुध लो नवयुवकों का,
वरना इतिहास लिखेगा फिर,
किए उपेक्षा, युवा के भावों का।।
उठो जवानों! रुकना मना है,
सपनों को मरने मत दो।
गीत बनो, हुंकार बनो,
हिटलर को रहने मत।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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