Saturday, 17 May 2025

वामपंथी दीमक: दुनिया को खोखला कर रही"

वामपंथी दीमक

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

दीप जला था ज्ञान का, फैला था भारत तेज,
धीरे-धीरे छाया तमस, बन गया संशय पेज।
कहीं इतिहास झूठा बोला, कहीं शौर्य को छीना,
चुपचाप भीतर घुसी हुई, एक दीमक चीना।।

नाम लिया समता का उसने, कर्म किया संहार,
संस्कृति पर कर दिए वार, बना 'प्रगतिशील' विचार।
गुरुकुल, वेद, पुराण मिटा कर, बोली नए निजाम की,
"धर्म तेरा अफीम है" धुन है मार्क्सवाद जाम की।।

अंधवाम के बुद्धिवादी, बोले खुद को ज्ञानी,
पर वे चुप थे जब जलती थी, जन-जन की बलिदानी।
जिन हाथों में कलम होनी थी, उठी वहीं तलवार,
शब्द बने विषबाण, भरे विष संस्कृति के हार।।

कहते ‘हिंदुस्तान’ नहीं अब, भारत शब्द गलत,
रामायण को मिथक बताएं, गीता है शापित फलत।

मार्क्सवाद के गीत चलाए, नक्सल को देव बनाएं,

सत्य बंधक बना रखा है, झूठ महिमा गाएं।।

पत्रकारिता की कुर्सी पर, बैठे अब व्यापारी,
विचार बिके हैं सस्ती में, मार्क्सवाद से भारी।
शिक्षा बनी एक मोर्चा, विद्या घटी अपार,
गुरु की जगह लिया उसने, करता वैचारिक वार।।

किन्तु अब यह युग बदलेगा, सत्य फिर से जागेगा,
ध्वजा उठेगी धर्म की, भारत फिर मुस्काएगा।
'वामपंथी दीमक' की गाथा, अब सबको बतलानी है,
भीतर के शत्रु को जानो भारत में तिरंगा फहरानी है।।

कलम हो तलवार बन जाए, जब राष्ट्र में हो खतरा ।
भूलो मत, दीमक भीतर है, नष्ट करो मार्क्स का नखरा।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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