Tuesday, 13 May 2025

सनातन कश्मीर की नागमाता चण्डिका

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

हिमरश्मि में लहराय उर, चिति की ज्योति महान,
नागमाता के अंक में, खेलें सृष्टि विधान।
जलधि तनु नागिनि लहरियाँ, भूमि की ज्योत्स्ना पड़ीं,
कश्मीर की वल्लरी में, चण्डी की छाये घड़ी।


हरिपरबत के शिखर पर, चण्डिका की सिंहनी,
क्षेत्रपाल नागों की मणि, कश्मीर जगत बोधनी।
विन्ध्याचल से गुप्त हिमगिरि, कुंडलिनी की धार,
तन्त्र बीज से फूटी ध्वनि, प्रत्यभिज्ञा विस्तार।।

नीलनाग के नयन जलों में, चित्त की लहरें उठतीं,
शिवरूपा चण्डी तत्त्वमयी, जाग्रत् शक्ति बन बहतीं।
अष्टमी की रजनी गह्वर, तन्त्रध्वनि जब गूंजे,
नागमाता के आँगन में, चण्डिका दीपक पूँजे।।

नागवंश के तपस्वियों ने, भूमि को पावन किया,
जलकुण्डों की छाया में, तन्त्रबोध उज्ज्वल जिया।
क्षेत्रपाल नागों के संग, शक्ति का जयघोष,
कश्मीर की मधु वासिनी में, ब्रह्म का शुभ ओस।।

नागमाता चण्डिका, तन्त्रविद्या के धार,
शत्रु संहार समर्पिता, चिति के उज्जवल सार।
दुर्गाष्टमी के पुण्य दिवस पर, जब बजती है दुंदुभि,
तब कौलाचार्य ध्यान में गाते हैं ज्ञान की सुरुभि।।

कुण्डलिनी की ज्वाल से, देवी नागिनी रूपा,
मूलाधार से ब्रह्मरन्ध्र तक, लीला चण्डिका भूपा।
विलीन जहाँ शिव में शक्ति, वही स्वर नागमाता का,
कश्मीर की इस भूमि में, अद्वैत योग है सुज्ञाता का।।

अभिनवगुप्त की वाणी में, नागमाता का गान,
सोमानन्द की प्रत्यभिज्ञा में, तन्त्रसिद्धि प्रमान।
परशुराम से पूरित जो बीज, नागमाता में खिला,
शिवत्व की उस चेतना को, श्रीदुर्गाष्टमी में मिला।।

कश्मीर की घाटी में गूँजे, चण्डिका मन्त्र महान,
"ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे", देवी माता की पहचान।
जल धरती आकाश तपस्या, सबमें एक ही सत्त्व,
नागमाता और चण्डिका, अद्वैत का चिरतत्त्व।।

@Dr. Raghavendra Mishra 


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