Wednesday, 28 May 2025

संघ की पुकार

(राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर एक राष्ट्रवादी कविता)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

धरा की गोद से उठी, दशहरे की सुबह महान,
नागपुर की मिट्टी गूंजे, भारत माँ के जयगान।
केशव के दृढ़ निश्चय ने जब बीज एक बोया,
संघ बना वह वटवृक्ष, जो हर दिशा में हुआ।।

न डंका, न प्रचार कोई, न सत्ता की कोई चाह,
बस राष्ट्रधर्म का दीप लिए, बढ़ता चला शुभ राह।
हर सुबह शाखा में गूंजे, “भारत माता की जय”,
संघ सिखाए शील, समर्पण, शौर्य, श्रम, विजय।।

गोलवलकर गुरूजी बोले “हिन्दू ही है राष्ट्र की आत्मा”,
जिसमें गंगा, वेद, उपनिषद, तीरथ, गायत्री और परमात्मा।
“वसुधैव कुटुम्बकम्” विचार, और “सर्वे सुखिनः” संकल्प,
संघ नहीं सिर्फ़ संगठन है, ये है संस्कृति का सुन्दर फल।।

राम मंदिर मांगे, श्याम मंदिर मांगे,
आरक्षण के झगड़े को करे न आगे।
बस सबको एक सूत्र में बाँधे,
जाति, भाषा, पंथ एक सूत्र के धागे।।

भूकम्प हो या बाढ़ का संकट,
संघ स्वयंसेवक बनते रक्षक,
सेवा, शिक्षा, संस्कार लाए,
वनवासी, दलित सबको गले लगाए।।

भारत माता की जय कहें, हर प्रांत, हर गाँव से,
संघ परिवार फैला हुआ है खेत-खलिहान से।
ABVP से छात्र जागे, मजदूरों का श्रम गौरव जागे,
किसानों की सेवा में संघ, सीमा पर सैनिक बन आगे।।

नव निर्माण का मंत्र यही “एक राष्ट्र, एक जन”
संघ की शाखा बने दीया, स्वयंसेवक उसका जीवन।
राजनीति से ऊपर इसका कर्म, राष्ट्रभक्ति इसका धर्म,
संघ नफरत नहीं सिखाता, सिखाता है आत्ममर्म।।

मातृभूमि की रक्षा हेतु, उठ खड़ा हो जो हर बालक,
वह स्वयंसेवक कहलाता है, भारत का हो सच्चा चालक।
क्योंकि राष्ट्र सबसे ऊपर है, यही संदेश पुराना,
“संगठित चलो, सेवा करो” यही संघ का गाना।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

8920597559

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