कश्मीर की धरती से निकले, सनातन ज्ञान का सत्य प्रकाश,
अभिनवगुप्त नाम अमर है, युगों तक हो जगत का विकास।।
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
कश्मीर की पुण्य भूमि में, प्राची स्मृति सुवास,
उतरे जहाँ शिवज्ञान से, यथार्थ विमल प्रकाश।
वेद, तंत्र, रस, योग में, जिसने डाली दीपलता,
वह संत, वह गुरु, ऋषि अभिनवगुप्त की अमरता।।
आचार्य कुल का गौरव लेकर, नरसिंहगुप्त सुत जन्मा,
तप, योग, शुद्ध साधना से, ब्रह्मतेज शिवशक्तिमय कर्मा।
नित्य सहचरी विद्या जिसके, शैव तंत्र की गोद में पला
कश्मीर वादी गूंज उठी, शिवशक्ति से हो सबका भला।
लक्ष्मणगुप्त ने ज्ञान दिया, त्रिक तंत्र का सार सिखाया,
शंभुनाथ से क्रमा पथ जाना, साधन में रच बस आया।
एक नहीं, अनेक पथों से, सत्य रूप की खोज करी,
त्रिक, स्पन्द, प्रत्यभिज्ञा दर्शन, आत्मानुभव से जोत भरी।।
‘तन्त्रालोक’! वह ग्रंथ महान, छप्पन सौ श्लोकों में ज्ञान,
योग, तंत्र, साधना की वीणा, जिसमें शिव का गूढ़ विज्ञान।
मंत्रों की वह मूक व्याख्या, मुद्रा की मौन संकल्पना,
आत्मा से परमात्मा तक की, पूर्ण शिवानंद कल्पना।
“तू ही शिव है”, यह उद्घोष ही प्रत्यभिज्ञा का अभिषेक है,
जीव नहीं तू सीमित, हे मन, सबका संबंध शिव से विशेष है।
बोध और क्रिया, ज्ञान और इच्छा, एकरस हो जहाँ विलीन,
वहीं समाया परम तत्व, अभिनव हैं सदाशिव में लीन।।
‘अभिनवभारती’ ग्रंथ महान, भरत नाट्य का दिव्य गान,
रस न केवल कला का भाव, वह तो आत्मा की पहचान।
शांत रस में शिव रूप खिलता, नाट्य बने अध्यात्म पुकार,
कला न कोई तुच्छ तृषा है, वह है ब्रह्म की एक धार।।
अंत समय जब निकट आया, शिष्यों संग गुफा में गए,
ध्यान-समाधि में लीन हुए, चेतन शिव में तन मन गए।
न काया रही, न वाणी बची, पर ज्ञान बना अमर प्रतिक्षन,
अब भी गूंजे तन्त्रालोक में, अभिनव का तत्त्वचिंतन।।
न केवल ग्रंथों के निर्माता, न केवल पंडित, न केवल कृषि,
वे तो शिव के ज्योतिस्वरूप, थे तंत्र, रस और ध्यानद्रष्टा ऋषि।
संवाद, समन्वय और साधना, जिनके जीवन का मूल है,
वेद तंत्र साहित्य संगम में, अभिनव के अभिनव फूल है।।
शिव स्वरूप उस महायोगी को, वंदन मेरा बारम्बार,
ज्ञानदीप जलाए जिसने, मिटा दिए तम के आधार।
कश्मीर की धरती से निकले, सनातन ज्ञान का सत्य प्रकाश,
अभिनवगुप्त नाम अमर है, युगों तक हो जगत का विकास।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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