शंकराचार्य ज्ञान के प्रान
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
काल की तिमिर रात में जब,
धर्म दीप मुरझाने लगे।
वेद मंत्र थे मौन पड़े,
विवेक-सरित बह जाने लगे।
तब प्रकटे दक्षिण दिशि से कोई,
ज्ञानज्योति का रथ ले आया।
शब्दों में शिव-ब्रह्म समाया,
जग को अद्वैत मार्ग दिखाया।
भाष्य हुए जिनके अमृतमय,
वेदांत बना जिनका शुभ माला।
उपनिषदों की गूढ़ व्याख्या,
सत्य-ब्रह्म की गहन पाठशाला।
ईश-कठ-केन और प्रश्न,
मुण्डक-माण्डूक्य का विश्लेषण।
तैत्तिरीय, ऐतरेय, बृहद्,
छांदोग्य में अद्वैत की प्रेषण।
गीता पर किया जब भाष्य उन्होंने,
कर्म में ज्ञान का मिलन रचा।
ब्रह्मसूत्रों को अर्थ दिए जो,
वेदांत का भवन नित्य वचा।
प्रकरण ग्रंथों की बही बहार,
जैसे गंगाजल की मधुर धार।
विवेकचूड़ामणि मणिरत्न बना,
आत्मबोध में अध्यात्म तना।
तत्वबोध में तत्व निखरता,
उपदेशसाहस्री गाते सार।
वाक्यवृत्ति का मधुर विचार,
सोऽहम् में जीव-ब्रह्म एकाकार।
भक्ति के भी भाव अपार,
शंकर गाए ब्रह्म के सार।
भज गोविन्दम् की पुकार सरल,
कनकधारा की कृपा अचल।
सौन्दर्य लहरी माँ का श्रृंगार,
दक्षिणामूर्ति गुरुवर आधार।
शिवानंद लहरी में शिव भासे,
हर श्लोक में चेतन स्वर रासे।
गौरी, गणेश, गंगा-स्तवन,
श्लोकों में रच दिया ब्रह्मदर्शन।
स्तोत्रों में भक्ति की वर्षा लागी,
भक्त-हृदयों में ज्वाला सी जागी।
लेखनी जिनकी ब्रह्म वाणी,
बोलों में समता, ध्यान ध्यानी।
संन्यास, तत्त्व, जीवन का सार,
शंकर ने खोले मोक्ष के द्वार।
जो वेदों का मर्म बतावे,
जो जीवन को ब्रह्म बनावे।
वह ग्रंथों का ऋषिराज महान,
शंकराचार्य ज्ञान के प्रान।
@Dr. Raghavendra Mishra
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