Saturday, 24 May 2025

जय हो प्रभा देवी योगिनी! नारी में ब्रह्म स्वरूपिणी! डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार) शिवचिंतन में लीन नारी, शून्य में जिसकी गूंज बसी, नाम प्रभा, पर छाया में थी, शारिका सम ज्योति हँसी। गुरु लक्ष्मण का दीप्त वचन, आत्मा में जिसने पिया, कश्मीर की वह साध्वी थी, तप में जिसने सत्य जिया।। न लेखनी के लोभ में आईं, न मंचों की चाह लिए, गृहिणी रहीं, पर साधिका थीं, शिव की अद्भुत राह लिए। बहन की छाया, साधना ही भाया, सब अनुभवों को बुना, शक्त्युल्लासः हुआ ग्रंथ प्रकाशित, आत्मबोध का दीप गुना।। मौन थी, पर भाव मुखर था, दृष्टि में दर्शन का रंग, नारीत्व में शिव समाहित, शब्दों में जागा तरंग। जो अनुभव की आँख से देखे, वही ब्रह्म को जान सकीं ऐसी विदुषी बन प्रभा देवी, साधकों को राह दिखा सकीं।। गुरु की कृपा से जो भी पाई, वो कण-कण में बाँट दिया, ना अभिमान, ना घोषणा, बस करुणा का भाव जग को दिया। स्त्री देह ना, बंधन है कोई, यह तो है साधना का द्वार, शिव-पथ पर जो नारी चलती, उसका हर पग है उपकार।। शब्दों से ना स्वयं को बाँधा, अनुभव ही ग्रंथ बना, भाष्य नहीं, बस मौन कथा थी, जो साधना से जीवित तना। गहराई थी नयन दृष्टि में, मृदुता वाणी में छिपी रही, पर भीतर लहरें ब्रह्मज्ञान की, अव्यक्त सी उठती रही।। ना संन्यास लिया, ना मांगा कुछ, पर शिव का किया जाप, प्रेम, समर्पण, मौन में रहकर, गुरुकृपा से पाया संताप। प्रभा देवी वह दीप बनीं, जो न कहे पर सब समझा दे, जो साधक हो अंतर में जागा, तो शिव का साक्षात्कार करा दे।। जय हो प्रभा देवी योगिनी! नारी में ब्रह्म स्वरूपिणी! शिवपथ की वह दीप्त रेखा, मौन की मधुर साक्षिणी। तेरी गाथा साधन पथ की, पीढ़ी-पीढ़ी गाएगी, शब्द, ज्ञान, साधना, श्रद्धा से, तेरा दर्शन पाएगी। @Dr. Raghavendra Mishra

जय हो प्रभा देवी योगिनी! नारी में ब्रह्म स्वरूपिणी!

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

शिवचिंतन में लीन नारी, शून्य में जिसकी गूंज बसी,
नाम प्रभा, पर छाया में थी, शारिका सम ज्योति हँसी।
गुरु लक्ष्मण का दीप्त वचन, आत्मा में जिसने पिया,
कश्मीर की वह साध्वी थी, तप में जिसने सत्य जिया।।

न लेखनी के लोभ में आईं, न मंचों की चाह लिए,
गृहिणी रहीं, पर साधिका थीं, शिव की अद्भुत राह लिए।
बहन की छाया, साधना ही भाया, सब अनुभवों को बुना,
शक्त्युल्लासः हुआ ग्रंथ प्रकाशित, आत्मबोध का दीप गुना।।

मौन थी, पर भाव मुखर था, दृष्टि में दर्शन का रंग,
नारीत्व में शिव समाहित, शब्दों में जागा तरंग।
जो अनुभव की आँख से देखे, वही ब्रह्म को जान सकीं 
ऐसी विदुषी बन प्रभा देवी, साधकों को राह दिखा सकीं।।

गुरु की कृपा से जो भी पाई, वो कण-कण में बाँट दिया,
ना अभिमान, ना घोषणा, बस करुणा का भाव जग को दिया।
स्त्री देह ना, बंधन है कोई, यह तो है साधना का द्वार,
शिव-पथ पर जो नारी चलती, उसका हर पग है उपकार।।

शब्दों से ना स्वयं को बाँधा, अनुभव ही ग्रंथ बना,
भाष्य नहीं, बस मौन कथा थी, जो साधना से जीवित तना।
गहराई थी नयन दृष्टि में, मृदुता वाणी में छिपी रही,
पर भीतर लहरें ब्रह्मज्ञान की, अव्यक्त सी उठती रही।।

ना संन्यास लिया, ना मांगा कुछ, पर शिव का किया जाप,
प्रेम, समर्पण, मौन में रहकर, गुरुकृपा से पाया संताप।
प्रभा देवी वह दीप बनीं, जो न कहे पर सब समझा दे,
जो साधक हो अंतर में जागा, तो शिव का साक्षात्कार करा दे।।

जय हो प्रभा देवी योगिनी! नारी में ब्रह्म स्वरूपिणी!
शिवपथ की वह दीप्त रेखा, मौन की मधुर साक्षिणी।
तेरी गाथा साधन पथ की, पीढ़ी-पीढ़ी गाएगी,
शब्द, ज्ञान, साधना, श्रद्धा से, तेरा दर्शन पाएगी।

@Dr. Raghavendra Mishra

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