डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
कविता: “सोनभद्र की समृद्ध गाथा”...
सोनांचल की धरती पावन, रत्नों से है भरी,
ऊर्जा की राजधानी, जननी समृद्धि की धरा खरी।
विंध्य-शिखर की गोद में बसा, जहां धन की धार बहे,
भारत राज्य की तिजोरी में, यहीं से पूरक स्वर्ण गहे।
खनिजों की गहराई से, कोयले की गर्मी लाए,
लाइमस्टोन, बॉक्साइट की खानें, संपदा नव ज्योति पाए।
राज्यकोष हो या केंद्रभंडार, रॉयल्टी का वर्षा हो,
सोनभद्र की इस माटी से, सरकारें वैभव में हर्षा हो।
शक्तिनगर से अनपरा तक, धुएँ से जले उजास,
NTPC की धड़कनों से, जलते हैं आशा के प्रकाश।
ओबरा हो या रिहंद का जल, बिजली बन घर घर जाए,
इन्हीं किरणों से भारत माता, ऊर्जा दीप जलाए।
कारखानों की कतारें हैं, सीमेंट शिल्प बनाते,
हिंडाल्को, जेपी, अल्ट्राटेक, विकास-पथ पर लाते।
GST हो, कॉर्पोरेट टैक्स, या हो उत्पादन शुल्क,
हर दिशा से धन प्रवाहित, जैसे निर्झर निर्मल मुल्क।
रेलमार्ग और हाइवे से, टैक्सों की है लहर,
ध्वनि करती गाड़ियों में भी, राजस्व छिपा शहर।
पर्यटन भी पीछे नहीं, अमिला शिवद्वार धाम,
श्रद्धा और संस्कृति से, बढ़ता राज्य का मान।
नगर हो या गांव, लोकहित में धन लुटाए,
सोनभद्र की इस संपदा से, सैकड़ों हित उपजाए।
प्रकृति, परिश्रम, परंपरा तीनों ने रचा इतिहास,
सोनभद्र का धन है अनुपम, उसकी जयकार हो विशेष प्रयास।
@Dr. Raghavendra Mishra
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