कम्पन में शिव...
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
शिव न थे केवल शून्य कहीं, न केवल निर्विकार,
वे तो स्पन्दन की चेतन ज्वाला, अनुभव का सत्कार।
जिसने सुना अंतर की तन्त्री में झंकृत वह नाद,
उसने पाया तत्त्व एक ‘शिव ही आत्मा का संवाद।’
आये कल्लट हिम की गोद में, वसुगुप्त के शिष्य महान,
ले ज्ञान दीपक थामा जब, जागी चैतन्य की तान।
न सूत्रों तक सीमित रक्खा, न वाक्यों में सीमाबद्ध,
किया विमोचित शिव का रहस्य, बना ‘स्पन्द’ में प्रतिबद्ध।
‘स्पन्द’ जहाँ हलचल हो सूक्ष्म, पर चेतन की पहचान,
जहाँ न शब्द, न रूप दिखे, पर आत्मा हो गूँज समान।
जहाँ ध्यान न बाह्य दिशा में, न हो भीतर शून्य भाव,
पर जो सम्यक देख सके "हर गति में शिव का प्रभाव"।
कल्लट बोले न मौन में सत्य, न शब्दों में पूर्ण अर्थ,
वह तो स्पन्दन की गहराई, जहाँ शिव कर हो कर्त।
प्रत्येक विचार, प्रत्येक भाव, जो चित्त में उठता,
वहीं कहीं शिव मुस्काते हैं, वहीं आत्मा झरता।
उनकी वाणी, शास्त्रों से भी, अनुभव की धारा,
साक्षी बन स्वयं शिव भी, जब प्रवाहित हो यह तारा।
‘स्पन्दकारिका’ में बँधा नहीं, वह मुक्त था हर ग्रन्थ से,
अन्तः की स्पन्दन ध्वनि में, शिव प्रकट थे तन्त्र से।
आज भी जब ध्यान लगे, हृदय में होवे शान्ति,
और बिना किसी कारण के, हो शिव कान्ति।
तो जानो वह कल्लट बोल रहे, शिव तुम्हीं में निहित,
जागो, वह चेतना स्वयं है, परमेश्वर से सम्पन्न जीवित।
@Dr. Raghavendra Mishra
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