Friday, 16 May 2025

अघोर पथ के योगी

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

श्मशान की शांति, राख विराग,
जहाँ मौन बोले, न हो कोई राग।
न लज्जा, न भय, न लोक लाज,
वहाँ चले अघोरी शिव का साज।

भस्म लेप शरीर पे उनका,
शिव भाव जगे मन में तिनका।
जहाँ श्वास भी मंत्र बने,
वहाँ अघोर तप जाप जने।

दत्तात्रेय गुरु प्रथम महान,
ज्ञानदृष्टि से खोलें ज्ञान।
त्रिकालदर्शी, योगी निधान,
जिनसे जागे आत्मा प्रान।

बाबा कीनाराम साधक श्रेष्ठ,
क्रींकुंड से सृष्टि को पाना।
"विवेक सागर" वाणी बनी,
अघोरी मार्ग शुभ रेखा जाना।

मेरठ में औघड़नाथ प्रकटे,
श्मशान में भैरव रूप रचे।
जहाँ नृत्य करे काल स्वयं,
वहाँ कालजयी साधक नचे।

कामाख्या की गुह्य काली,
महा अघोरी माँ कपालि।
शव के ऊपर ध्यान रमे,
भैरवी तंत्र स्वयं जमे।

हिंगलाज माता बलोच की शान,
जहाँ शून्य में जगे परमानंद ध्यान।
सती ब्रह्मरंध्र जहाँ गिरा,
तांत्रिकों का हृदय वहीं घिरा।

पशुपतिनाथ हिमगिरि में,
शिव स्वयं हैं समाधि में।
नेपाल भूमि का यह चमत्कार,
अघोरी साधकों का आधार।

त्रैलंग स्वामी, योगी महान,
वाराणसी में किया तपान।
जल में जिए, अग्नि में रम,
कर्मातीत हुए वह परम।

दत्त की भूमि चित्रकूट धरा
जहाँ साधना हुई परा।
श्वास-श्वास में शिव का भाव,
अघोरी पथ पर परम प्रवाह।

विंध्याचल की शक्तिरूपा,
वहाँ साधकों की जागे भूपा।
रात्रि तिमिर में मंत्र गूँजते,
जहाँ यंत्र और तंत्र जुड़ते।

उज्जैन में काल भैरव ध्याये,
मदिरा चरणों में चढ़ाए।
अघोरी वहाँ समाधि करें,
मृत्यु को भी मोक्ष बनाएं।

यह पंथ नहीं, यह पावन पुकार,
जीव से शिव की ओर संचार।
जहाँ शून्य भी शिव रूप हो जाए,
वहाँ अघोरी साधक लय में समाए।

न पत्थर, न पुस्तक, न यंत्र गान,
बस आत्मा में शिव का भान।
अघोर न विरोध, न द्वेष, न काल,
बस सत्य, समाधि और ब्रह्म रस लाल।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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