ज्ञान तपस्या के तेजस स्वामी श्री अवधेशानंद गिरि जी महाराज🙏
(स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज पर आधारित कविता)
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
(विजिटिंग फैकल्टी, NSD, नई दिल्ली और काशी विद्वत परिषद, सदस्य, काशी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत)
वेद वेदांत की वाणी बन, जब धरती पर उतरे ज्ञानी,
बुलंदशहर की पावन धरा पर, प्रकटे भए दिव्य कहानी।
साधना के स्वर में लयबद्ध, तप से सिंचित हर पल,
अवधेशानंद नाम तेजस्वी, ज्योतिर्मय जैसे सूरज अचल।।
महानिर्वाणी परंपरा की, थाती लेकर चले सन्यास,
हिमगिरि की गुहा में साधक बन, जग में करें प्रकाश।
जूना अखाड़ा की ध्वजा तले, आचार्य पद पर विराजे,
भारतीय संस्कृति के प्रहरी बन, धर्म पताका साजे।।
योग, तपस्या, सेवा, त्याग, इनका जीवन का संदेश,
वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना, हर शिष्य में वही प्रवेश।
गंगा की निर्मल धारा जैसे, इनके विचार शीतल पावन,
मन, वचन, कर्म में गूंजे नित, वेदांत का स्वर मधुर मनभावन।।
गौसंरक्षण हो या गंगा माता, पर्यावरण की पुकार,
जन-जन में चेतना जगाते, धर्मध्वजा के अवतार।
प्रवचनों में सरलता ऐसी, ज्यों अमृत का मधुर रस,
अज्ञान मिटे, विवेक जगे, जीवन हो सुफलित सुजश।।
विद्या, तप और विवेक के संग, जीवन को दी साधना की डोर,
योग-संयम के पथ पर चल, बने संतों के संत विभोर।
अन्नदान, शिक्षादान, सेवा, संस्कृति का श्रृंगार,
विश्वमंच पर भारत की महिमा, कर दी उज्ज्वल अपार।।
तेजस्वी तपस्वी, निर्मल मन, संयम के मूरत प्यारे,
धर्म-ध्वजा के वीर वाहक, अवधेशानंद गुरु स्वामी हमारे।
ज्ञान, करुणा और शक्ति का, संगम जिनमें दिखता है,
ऐसे युगपुरुष का वंदन, भारत भूमि नित करता है।।
चरणों में नमन, प्रणाम अर्पित।
@Dr. Raghavendra Mishra
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