"जन जन में राम"
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
(विजिटिंग फैकल्टी, NSD, नई दिल्ली और काशी विद्वत परिषद, सदस्य, काशी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत)
जपत रहो सदा, सब मन में राम
तन तन में राम, जन जन में राम...2
जन जन में राम बसे हैं प्यारे,
धूप छाँव में हैं राम हमारे।
गाते हैं हम राम की मधुर वानी,
राम तुम्हीं हो भारत की निशानी।।
भूखे को अन्न, तपी को छाया,
राम तुम्हारा करुणा भाया।
सीता की पीड़ा में राम जी रोए,
हर जन में प्रभु मुस्कान सजोए।।
भक्तों के आँखों में हो उजियारा,
किसान के हल में जीवन सारा।
तुलसी की चौपाई में हो संसारा
राम तुम्हीं हो भारत का सहारा।।
भंगी के श्रम में, योगी के ध्यान में,
राम बसते हैं हर इंसान में।
न मंदिर के भीतर, न शिला में बसे हो,
जन जन के हृदय में श्रीराम रसे हो।।
उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम,
राम बिना सब कुछ है मद्धिम।
भक्ति से भर दो यह जीवन प्यारा,
राम का नाम है शुभ उजियारा।।
जन जन में राम, सब तन में राम,
आओ करें सब मन से प्रणाम।
नफरत को छोड़, अपना हो धाम,
भारत बने फिर श्रीराम का ग्राम।।
जपत रहो सदा, सब मन में राम
तन तन में राम, जन जन में राम...2
@Dr. Raghavendra Mishra
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