नमन तुम्हें हे दयानंद, युगद्रष्टा वेदविहारी
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
मां भारत भूमि में जन्मे, तेजस्वी एक प्रभात,
मुलशंकर नाम था उनका, ज्ञान की पवित्र बरसात।
बालकपन से वेद-विवेकी, शास्त्रों में रत ध्यान,
सत्य-खोज की धुन लगी, त्यागा मोह-माया प्रान।।
शिवरात्रि की एक निशा में, मंदिर में देखे भक्ति,
सभी प्राणी हैं शिवलिंग में, जागे मन में परम शक्ति।
जो वेदमंत्र मन से गाए, सब जीव, प्राणी पूज्य हो जाएं,
सर्वशास्त्र मय स्व भारत हो, आत्मा से वैदिक दीप जलाए।।
गुरु विरजानंद से पाया, वैदिक सत्य का मंत्र,
पाखंडों से जूझ चले वे, बना दिए संकल्प सुयंत्र।
वेदों की ओर लौटो फिर, जग में गूँज उठी वाणी,
जातिवाद, अंधविश्वास को, खत्म किए परम ज्ञानी।।
मुंबई में आर्य समाज रचा, दस अप्रैल का दिन महान,
नवयुग का उद्घोष हुआ, जागे भारतवर्ष का ज्ञान।
नारी शिक्षा, विधवा विवाह, शुद्धि यज्ञ प्रारंभ किया,
छुआछूत की दीवार तोड़ी, मानव धर्म को सत्य दिया।।
ईश्वर है निराकार, शुद्ध, अनादि और सर्वज्ञ,
कर्मसिद्धांत, पुनर्जन्म, सत्यार्थप्रकाश ज्ञान प्रसंग।
तिलक, लाजपत, भगत सरीखे, वीरों को दी चेतना,
संघर्षों से ओतप्रोत बना, जीवन स्वामी का देखना।।
षड्यंत्रों से मृत्यु आई, पर अमर रहे विचार,
दी जो वैदिक ज्वाला उन्होंने, वो जले हजारों बार।
भारत को फिर वैदिक रथ पर चढ़ने की राह दिखाई,
स्वाभिमान, स्वधर्म, स्वज्ञान की मशाल जगत में छाई।
नमन तुम्हें हे दयानंद, युगद्रष्टा वेद-विहारी,
तुम्हारे स्वर में गूँज रही है, संस्कृति हो शुभकारी।
अंग्रेजों की जंजीर तोड़ी, बहुत तर्क बताएं,
भारत माता के इस सपूत का, शत शत वंदन गाएं।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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