मध्यप्रदेश का स्वप्न संजोए, बढ़ रहे वह नित्य।
जय जननी! जय जनपद! जय मोहन के उत्तम कृत्य।।
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
उज्जयिनी की पुण्य धरा से, उठे तेजस्वी ज्ञान प्रकाश।
धर्म, नीति, सेवा, श्रम से, रच दिया नव विकास।।
विद्या के वरदान सजे जब मोहन के सिर ताज।
पीएचडी की पूर्ण गरिमा, नेतृत्व में शुभ अंदाज़।।
छात्र जीवन से ही सजग, बना संघ संदीप।
ABVP की चेतना में, जागा राष्ट्र का दीप ।।
राजनीति में जब उतरे, साथ था उज्जैन का मान।
विधानसभा की पावन भूमि ने देखा यह नव गान।।
तीन बार के विधायक बन, जनमन का विश्वास।
शिक्षा मंत्री बन सँवारा, ज्ञान का हर आकाश।।
फिर जब शिवराज ने छोड़ी सत्ता की बागडोर।
मोहन यादव ने थामा था, विकास का पुर जोर।।
मुख्यमंत्री बनते ही बोले “जनसेवा मेरा धर्म”।
हर योजना में झलके हैं, जनकल्याण के कर्म।।
किसानों के हित की बातें हों या लाडली लक्ष्मी का साथ।
हर योजना में मोहन जी लाते जन को नई सौगात।।
स्वास्थ्य में बीमा की छाया, शिक्षा में संबल अपार।
कौशल, खेल और कृषि में, हो रहा प्रदेश का उद्धार।।
संस्कृति का वह रक्षक है, उज्जैन जिसका मूल।
महाकाल की छाया में, कर रहा कर्म अनुकूल।।
मोहन हैं वह दीपक जो, जलता जन के हेतु।
संघर्षों में मुस्काए जो, दृढ़ हो जैसे वेद के सेतु।।
मध्यप्रदेश का स्वप्न संजोए, बढ़ रहे वह नित्य।
जय जननी! जय जनपद! जय मोहन के उत्तम कृत्य।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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