Tuesday, 27 May 2025

सत्यार्थ प्रकाश में लिख डाले युग के यथार्थ विचार

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

जन्मा एक तेजस्वी बालक, हुआ मूलशंकर नाम,
त्याग दिए घर, भोग, बंधन, खोजे केवल राम।
सन्यास लिया, खोजे सत्य, करें आत्मा का वंदन
जग को फिर समझाया उसने, वेद का हो अभिनंदन।।

आध्यात्मिक दीपक जले, मन में सत्य विचार,
ईश्वर है जो निराकार, अनादि, साकार।
जातिवाद, कर्मकांड, सबका किया विरोध,
सत्य, यज्ञ, स्वाध्याय से, खोला वैदिक बोध।।

सामाजिक जंजीरें तोड़ी, जागे जन के मीत,
बालविवाह, अंग्रेजों को दिए तर्कों के गीत।
नारी शिक्षा का अधिकार हो, वैदिक धर्म महान,
जाति नहीं, हो गुण आधारित, यही दिया विधान।

कलम बनी जब क्रांति की मशाल, लेखनी बनी पुकार,
‘सत्यार्थ प्रकाश’ में लिख डाले युग के यथार्थ विचार।
वेद भाष्य, संस्कार विधि, व्यवहार भानु महान,
गो करुणा, धर्म रक्षण सबमें जगाया प्रान।।

संस्कृति का उत्थान किया, जीवन को दी रीति,
संस्कार, संयम, यज्ञ-पथ यही बनाई नीति।
शुद्ध आहार, शुद्ध विचार, वेदों की वह वाणी,
भारत माता के हृदय से जुड़ी हुई यह कहानी।।

समरसता का संदेश दिया, सबमें ईश्वर एक,
न भेद भाव, न ऊँच-नीच, बस प्रेम और नेक।
‘आर्य समाज’ बना जहाँ, सबने हाथ बढ़ाए,
वर्णाश्रम की सही व्याख्या, युग के दीप जलाए।।

राजनीति से दूर रहे, पर दिए विचार क्रांतिपूर्ण,
तिलक, लाजपत, भगत बने, उन वाणी के संपूर्ण।
अंग्रेज़ी शिक्षा का किया विरोध, भारत में हो वेदज्ञान,
स्वदेशी संस्कृति की दी मशाल, बनाया राष्ट्र महान।।

वेदविहारी, वह युग द्रष्टा थे, वेदों के प्रचारक,
तप, ज्ञान, त्याग के मार्ग पर, धर्म-क्रांति के धारक।
नमन उन्हें, नभ वेद जगे, मन में दीपक बाले,
भारत की मिट्टी को फिर से, स्वर्णमय कर डाले।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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