निरंजनी अखाड़ा : सनातन का दीपज्योति
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
(विजिटिंग फैकल्टी, NSD, नई दिल्ली और काशी विद्वत परिषद, सदस्य, काशी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत)
गंगा तट पर जगे तपस्वी, शिवभाव में लीन विचार,
वैराग्य, ज्ञान, धर्मरक्षा, बन कर खड़े अखाड़ा आधार।
कपिलानंद की अमर धरोहर, अद्वैत वेदांत का मंत्र,
निरंजनी अखाड़ा की कथा, है पावन, पुण्य और तंत्र।।
निर्मल मन, उत्तम चेतना, 'निरंजनी' जिसका नाम,
मलिन न हो जो अंतःकरण, वही बने शिवधाम।
संन्यासियों का यह मण्डल, शैव परंपरा की शान,
योग, ध्यान, तप, वेद वाणी, जिनसे चमके हिंदुस्तान।।
गज, घोड़े, शंखनाद से, जब शाही स्नान सजे,
निरंजनी अखाड़े की छवि, जग में गौरवगान बजे।
त्रिशूल, डमरू, रुद्राक्षी माला, गंगा की लहरों संग,
धरती गूँजे हरि हरि बोल, शिवतत्त्व में डूबे अंग।।
शास्त्र में पारंगत महामंडलेश्वर,
शस्त्रधारी धर्मसैनिक वीर,
कुंभ की गलियों में प्रतिध्वनित,
निरंजनी के पावन पीर।।
धर्मद्रोही से किया सामना,
गुरु शिष्य परंपरा निभाये,
गौसेवा, अन्नदान, तप, त्याग,
सेवा में जीवन बिताये।।
गुरु कपिलानंद से कैलाशानंद तक,
संतों की अमर कहानी,
सनातन का यह अखंड दीपक,
भारत की शाश्वत वानी।।
निरंजनी अखाड़ा नमन तुम्हें,
तप, त्याग, वैराग्य महान,
शिव शक्ति की अखंड साधना,
तुमसे उज्ज्वल है हिन्दुस्तान।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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