Thursday, 22 May 2025

मार्तण्ड वह सूर्य है, जो सनातन धर्म का शान

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

स्वर्ण किरणों की गोद में, हिमालय का ताज,
मार्तण्ड खड़ा है अभी, सहन कर सब राज।
अनंतनाग की धरा पे, सूर्य की वह छाँह,
जहाँ पत्थर भी देखते, सभी वेदों की राह॥१॥

राजा ललित का स्वप्न था, धर्म की अभिव्यक्ति,
निर्माण में जो गूँजती, आदित्य की भक्ति।
कश्मीरी शिल्प की मृदुता, गुप्तों की गहराई,
ग्रीक मिश्रित चित्र वाली, शिव सूर्य की छाई॥२॥

न मंदिर मात्र भवन रहा, न ईंट मात्र शिला,
वह एक यज्ञ की ज्वाला है, तब शाश्वत बीज खिला।
वह सूर्य जो सबको ताज दे, पर खुद अकेला खड़ा,
भक्ति की वह बूँद है, जो आज भी अलौकिक पड़ा॥३॥

सप्त घोड़ों की रथ रेखा, नज़र न आती आज,
पर आकाश से बरस रही, अब भी उसी की साज।
खण्डहरों की छाँव में, इतिहास गाता राग,
कालजयी है यह स्मृति, काल से जो है विराग॥४॥

नत हो मस्तक तीर्थ में, निसर्ग करे जो नृत्य,
शब्द न हों, केवल हो मौन, आत्मा में हो कृत्य।
मार्तण्ड वह सूर्य है, जो सनातन धर्म का शान,
वह ज्योति जो भीतर जले, भारतीय के मन का गान॥५॥

@Dr. Raghavendra Mishra 

No comments:

Post a Comment