अनादी मी, अनंत मी
(मराठी मूल कविता : विनायक दामोदर सावरकर)
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
अनादि मी, अनंत मी।
अवध्य मी, भयंकर।।
सदैव मी, अभंग मी।
शिवाहुनी शिवरूप।।
न देह मी, न मर्त्य मी।
न माय, न संहार।।
अचल मी, अखंड मी।
नवात्मा, नवशक्ति।।
प्रचंड मी, प्रलय मी।
नव सृजन, नव मोक्ष।।
कल्पांत मी, महाकाल।।
नव जन्म, नव नाश।।
भूता मी, भविष्य मी।
वर्तमानाचा स्वामी।।
न भीती, न शोक मी।
निर्भय, निष्कलंक।।
सत्य मी, चैतन्य मी।
शून्य मी, पूर्ण मी।।
ब्रह्मांडाचा मूल मी।
विश्वाचा आधार।।
मुक्त मी, स्वतंत्र मी।
निःशंक, निर्द्वंद्व।।
कर्म मी, धर्म मी।
जय माझा अमर।।
हिंदी अनुवाद
मैं अनादि हूँ, मैं अनंत हूँ,
मैं अवध्य हूँ, मैं भयंकर हूँ।
मैं सदा हूँ, मैं अटूट हूँ,
शिव से भी शिवरूप हूँ।
न मैं शरीर हूँ, न मरणशील,
न माया हूँ, न विनाश हूँ।
मैं अचल हूँ, अखंड हूँ,
मैं नव आत्मा, नव शक्ति हूँ।
मैं प्रचंड हूँ, मैं प्रलय हूँ,
मैं नव सृजन, नव मोक्ष हूँ।
कल्पों के अंत में भी मैं हूँ,
मैं नव जन्म, नव संहार हूँ।
मैं भूतकाल हूँ, भविष्यकाल हूँ,
वर्तमान का मैं स्वामी हूँ।
न मुझे भय है, न शोक,
मैं निर्भय हूँ, निष्कलंक हूँ।
मैं सत्य हूँ, मैं चैतन्य हूँ,
मैं शून्य भी हूँ और पूर्ण भी।
ब्रह्मांड का मूल हूँ मैं,
विश्व का आधार हूँ मैं।
मैं मुक्त हूँ, स्वतंत्र हूँ,
निःशंक, द्वंद्व-रहित हूँ।
मैं कर्म हूँ, मैं धर्म हूँ,
मेरा जय अमर है!
- यह कविता अद्वैत वेदांत और राष्ट्रवादी आत्मबोध का अद्भुत संगम है।
- इसमें आत्मा को शिव, काल, सृजन और संहार के स्वामी के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- यह कविता सावरकर जी के अखंड आत्मबल, स्वराज्य के विश्वास और दिव्य चेतना का परिचायक है।
@Dr. Raghavendra Mishra
8920597559
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