Saturday, 31 May 2025

नानाजी देशमुख : एक जीवन गाथा

(सेवा, शिक्षा और सनातन धर्म के दीपक को समर्पित)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

जन्म हुआ उस धरती पर, जहाँ अद्वितीय पर्वत गाते,
महाराष्ट्र की माटी थी वह, पर कर्मभूमि उत्तर को पाते।
नाम था बालक का नाना, पर सोच थी देश से प्यारी
बाल गंगाधर से प्रेरित होकर, थामी हिंदुत्व की क्यारी।।

भूख ने जब प्रश्न किया, नयन हुए अश्रु से गीले,
मन कहता ज्ञान है पथ, पढ़ो, दुख से मत हो पीले।
स्कॉलरशिप से बना सपना, साधु की रसोई तक आए,
पर संघ की शाखा में पहुँचे, तब भाग्य के दीप जलाए।।

गुरु गोलवलकर मुस्कुराए, कहा “प्रचारक बनो तुम्हीं,”
और भेजा उत्तरप्रदेश को, जहाँ शिक्षा की बस कमी।
नानाजी ने उठाया बीड़ा, कहा "संघ को स्कूल चलाना होगा,"
संघ ने कहा "पाँच नहीं, दो दशक सोचते हैं हम योगा।"

गोरखपुर बना प्रयोगभूमि, 1952 में दीप जला,
सरस्वती शिशु मंदिर खुला ज्ञान का दीपक फला।
पाँच बरस बीते, बच्चों की भीड़ उमड़ने लगी,
नानाजी बोले अब और स्कूल खोलें, ये नीति बनने लगी।।

संघ ने कहा “अभी नहीं,” पर एक दिन दृश्य विचित्र मिला,
प्रवेश परीक्षा में रोता बच्चा, नानाजी का हृदय द्रवित खिला।
जो स्वयं शिक्षा के लिए रसोई में खड़ा हुआ,
कैसे देखे कोई बालक, ज्ञान से वंचित, रोता हुआ?

नागपुर को भेजा संदेश “ज्ञान सबका हो अधिकार,”
गोलवलकर ने अबकी बार कहा “खोल दो शिक्षा के द्वार।”
विद्यालयों की श्रंखला चल पड़ी, गाँव-गाँव दीप जले,
जनसंघ, विहिप, संघ सब मिलकर शिक्षा का रथ ले चले।।

जब 1975 आया, संख्या सौ से ऊपर हो गई,

विद्या भारती नाम से, धारा शिक्षा की बहे नई।
देवरस बोले जात-पात की रेखा मिटानी है,
सभी बालक पाठशाला में यही एक निशानी है।।

नानाजी का संकल्प गहरा, शिखर छूते राजनीति का,
पर जब सत्ता ने हाथ जोड़े, दीप जलाते शुभनीति का।
राजमाता ने कहा “लौटो”, पर उत्तर आया भाव से भरा,
राजाराम नहीं, मैं पूजक हूँ वनवासी राम का गहरा।।

चित्रकूट बना तपोवन, ग्रामोदय हुआ संकल्प,
सेवा, शिक्षा, संस्कार यही बना जीवन का विकल्प।
प्रधानमंत्री ने बुलवाया, राष्ट्रपति ने किया सम्मान,
पर नानाजी के लिए पद नहीं, सेवा ही रहा ब्रह्मज्ञान।।

मोहन भागवत उद्घाटन में बोले "याद आता है वो दिन,
नाना ने कहा एक स्कूल और बनवा देना, मेरा यही है चिन्ह।

आज 34 लाख बालक पढ़ते, ज्ञान की गंगा बहती,
जहाँ जाति, धर्म, भेद नहीं बस राष्ट्रसेवा रहती।।

नानाजी देशमुख ने बताया, जोड़ो भारत को ज्ञान से,

वनवासी को भी शिक्षा दो, त्याग, तपस्या और सम्मान से।

नमन उस युगपुरुष को, जिनकी दृष्टि थी दूरगामी,
जिन्होंने शिक्षा को बनाया धर्म और सेवा के स्वामी।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

8920597559

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