Thursday, 29 May 2025

मैं अनादि, मैं अनंत

(मराठी मूल पर आधारित हिंदी काव्य)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU(लेखक/रचनाकार)

मैं अनादि, मैं अनंत हूँ,
अवध्य, भीषण तंत हूँ।
मैं सतत, अचल, अभंग हूँ,
शिव में भी शंकर संग हूँ।।

न मैं शरीर, न मृत्यु तंत्र हूँ,
न माया, न कोई अंत हूँ।
नवचेतन, नवशक्ति स्वरूप,
मैं नित्य अखंड बस एक भूप हूँ।।

प्रचंड मैं, प्रलय रूप भी,
सृजन नया, मुक्ति का दीप हूँ।
कल्पों के अंतिम छोर पर भी,
महाकाल का मौन समीप हूँ।।

मैं भूतकाल का गुप्त बीज,
भविष्य का मैं गर्भगृह।
वर्तमान पर राज्य करे जो,
वह आत्मा का सत्यगृह।।

ना भय मुझे, न शोक कोई,
मैं निर्भय और निष्कलंक।
मैं सत्यस्वरूप चैतन्य स्वर,
मैं शून्य भी, और पूर्ण अंक।।

ब्रह्मांड की जड़ में बसा,
मैं कारण का कारण हूँ।
जग का मूलाधार वही,
मैं ही उसका स्थिर वारण हूँ।

मैं मुक्त, स्वतंत्र, अनंत पथ,
ना द्वंद्व, ना संशय का स्थान।
मैं कर्म स्वयं, मैं धर्म अचल,
मेरा जय हो अमर विधान।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

8920597559

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